तीर्थराज हरिद्वार में कुछ अति धार्मिक श्रद्धालु किसी गरीब कन्या के विवाह के लिए नकद रुपया और उपकरणों का दान भी करते हैं। वे पहले से सूचना देकर ऐसे लोगों की जानकरी इकट्ठी कर लेते हैं, जो, धन की कमी से अपनी बेटी का ब्याह नहीं कर पाते।
पर्व के दिन दान देने वाला इन कन्याओं को बुलाकर पुरोहित के जरिये इनके विवाह के लिए दान देता है। वह दान करने के बाद इस कन्या को अपनी बेटी मान लेता है। वह बेटी के पिता से कहता है कि विवाह के बाद इस कन्या को उसके घर लाए। दान के जरिये बताई गई इस बेटी को श्रद्धालु अपनी ही बेटी मानकर समय-समय पर उन्हें कुछ न कुछ भेंट उपहार देते रहते हैं। दान का यह सामाजिक रूप ज्यादा प्रचलन में नहीं है, लेकिन इसके कई उदाहरण दिए जा सकते हैं।
शय्यादान
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तीर्थराज हरिद्वार में में शय्यादान का बहुत महत्व है। यह दान हजारों वर्ष से चलन में है तीर्थस्थल के पुरोहित जिन चौरासी दानों की चर्चा करते हैं, वे कमोबेश इसी शय्यादान के अंग है। इसमें आमतौर पर गृहस्थी में काम आने वाली चीजों का दान किया जाता है। इस सूची में ज्यादातर ऐसी चीजें रखी गई हैं, जिनका इस्तेमाल तीर्थ पुरोहित कर सकते हैं।
हरिद्वार में शय्यादान आमतौर पर दो तरह से किए जाते हैं। मृत्यु के बाद श्राद्ध कर्म के दौरान किया जाने वाला शय्यादान केवल महापात्र लेते हैं। इसे प्रयाग के तीर्थ पुरोहित स्वीकर नहीं करते। कल्पवास की अवधि पूरी होने पर श्रद्धालु तीर्थ यात्री जो शय्यादान करते हैं, उसे तीर्थ पुरोहित स्वीकार करते है। यह दान श्रद्धालु इसलिए करते हैं कि परलोक में उन्हें सुख मिले। इस लोक में कल्याण और परलोक में सद्गति के लिए यह दान किया जाता है।
हाथी, घोड़ा, पालकी, गाय, मोटर-कार, जैसे वाहन तीर्थ पुरोहितों को माघ मेले या कुम्भ योग के समय मिलते हैं। उन्हें जमीन और भवन भी दान में मिलता है। इन दानों का अपना इतिहास है।
दरअसल, तीर्थ हरिद्वार के लिए देश-विदेश के श्रद्धालुओं में गहरी आस्था है। आस्था का यह प्रवाह सनातन काल से चल रहा है। इसकी गति मन्द भले ही पड़ जाए, लेकिन यह धारा कभी सूख नहीं सकती। इस 'दान धारा' के साथ करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्थाएँ जुड़ी हुई हैं।