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महाकुंभ में बिक रहे मुगल और ब्रिटिश कालीन सिक्के

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हमें फॉलो करें महाकुंभ मेला इलाहाबाद
कुंभनगर , शनिवार, 19 जनवरी 2013 (14:45 IST)
WD
उत्तरप्रदेश में प्रयाग के गंगा-यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम पर चल रहे महाकुंभ मेले में मुगल और ब्रिटिशकालीन सिक्के बिक रहे हैं।

मेले में जगह-जगह गमछे पर बिछा कर रखे गए सिक्के न केवल भारतीय बल्कि विदेशी सैलानियों को भी आकर्षित कर रहे हैं। महाकुंभ में आने वाले लोग यहां से गंगाजल ही नहीं बल्कि याद के रूप में सिक्के भी खरीद कर ले जा रहे हैं। खासकर विदेशी सैलानी उन सिक्को की ओर ज्यादा आकर्षित हो रहे हैं जिन्हें ईस्ट इंडिया कंपनी ने 19वीं शताब्दी मे हिन्दू देवी-देवताओ के सम्मान में निकाला था।

आधा आना के सिक्कों पर एक ओर गणेश लक्ष्मी के चित्न है तो एक आना के सिक्कों पर राम-सीता-लक्ष्मण तथा हनुमान को देखा जा सकता है।

ईस्ट इंडिया कंपनी ने इन सिक्कों को 1808 से 1838 के बीच जारी किया था। इसके अलावा कुछ मुगलकाल के भी सिक्के दिखाई देते हैं, लेकिन उनकी संख्या काफी कम है। बिक्री के लिए ये सिक्के कहां से आए इस बारे में कोई भी कुछ बताने को तैयार नहीं है। यहां तक कि उसे बेचने वाला भी नहीं।

उत्तरप्रदेश के औरेया से सिक्के बेचने आए युवक कन्हैया ने कहा कि उसने यह सिक्का हरिद्वार के पंडो से पांच से दस रुपए प्रति सिक्के की दर से खरीदा था। हरिद्वार में 2010 में हुए कुंभ मे ये सिक्के गंगा से निकाले गए थे। गंगा में सिक्के चढ़ाने की परम्परा रही है। नोट चूंकि गल जाते हैं इसलिए लोग गंगा में सिक्के ही डालते हैं।

हरिद्वार में गंगा किनारे रहने वाले गोताखोर बच्चों ने ये सिक्के निकाले और उसे पंडो को दे दिए या बेच दिए। हरिद्वार के पंडो से ये सिक्के खरीदे गए। कन्हैया इन सिक्कों को पचास से एक सौ रुपए में बेच रहा है।

इसके अलावा ब्रिटेन, जर्मनी तथा फ्रांस के भी सिक्के बिकते दिखायी दे रहे हैं। हालांकि इनके खरीददार कुछ चुने हुए विदेशी नागरिक ही है। सबसे ज्यादा मांग उन सिक्कों की है जिस पर हिन्दू देवी-देवताओं के चित्न उकेरे गए हैं। इन सिक्कों को भारतीय ही नहीं बल्कि विदेशी भी खरीद रहे हैं।

जर्मनी से आए क्रस्टन और उनकी पत्नी स्टेंफी ने पांच दिन के महाकुंभ प्रवास में पचास से एक सौ रुपए में पांच सिक्के खरीदे। आजाद भारत में बंद हुए तांबे के छेद वाले आधा पैसे, एक पैसे, इक्कनी और दुअन्नी भी बाजार में बिक्री के लिए है। युवाओं के लिए ये सिक्के कौतुहल की चीज है।

करीब पचास साल पहले बंद हुए सिक्के युवाओं के लिए आकर्षण का केन्द्र बने हुए है। इसके अलावा साठ के दशक में आए अल्युमिनियम के एक पैसे तीन पैसे और पांच-दस तथा बीस पैसे के सिक्के भी बिक रहे हैं। ये सिक्के अब बंद हो चुके हैं। (वार्ता)

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