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शाही स्नान का इंतजार

कुंभ मेले में तीर्थयात्रियों की भीड़

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हमें फॉलो करें माघी पूर्णिमा
- महेश पाण्ड
SUNDAY MAGAZINE

कुंभ मेले में शिरकत करने के लिए साधु-संतों व आमजनों का आना बदस्तूर जारी है। अखाड़ों के लिए भूमि आवंटन का मामला भले ही कोर्ट पहुँच गया हो और लोग नाराज हों पर फिर भी स्थानीय लोगों सहित यहाँ पहुँच रहे अन्य तीर्थयात्रियों को शाही स्नान का इंतजार है।

हरिद्वार की पवित्र कुंभनगरी तेजी से बस रही है और हर क्षण के साथ नया आकार और नया रूप ग्रहण कर रही है। साधु-संतों का विष्णुपुरी नाम से ख्यात इस नगरी में आने का सिलसिला बदस्तूर जारी है। इनको विश्राम देने के लिए यहाँ तंबुओं का एक नया शहर ही बस रहा है। यहाँ शंकराचार्य और महामंडलेश्वर तो अपने आध्यात्मिक प्रवास में रमेंगे ही, तमाम आध्यात्मिक प्रवचनकर्ताओं के संग-संग आर्ट ऑफ लीविंग के प्रवर्तक श्री श्री रविशंकर भी अपनी धूनी यहाँ रमाएँगे।

इस बीच पापों से मुक्ति देने वाली निर्मल गंगा में आस्थावानों ने बसंत पंचमी की पवित्र डुबकी तो लगा ली है और अब माघ पूर्णिमा के पवित्र स्नान की तैयारी में धर्मावलंबी जुटे हुए हैं। माना जा रहा है कि उस दिन तक देश के कोने-कोने से सभी साधु-संत यहाँ पधार जाएँगे और तंबुओं की नगरी अपना पूर्णाकार ले चुकी होगी। दुर्भाग्य से तंबुओं की कालोनी के निर्माण के लिए स्थान आवंटन का मामला कोर्ट जा पहुँचा है। विभिन्न अखाड़ों को भूमि आवंटित करते समय धांधली किए जाने की शिकायत लेकर वैष्णव आश्रम के रामानुज वैष्णव ने एक याचिका दर्ज कराई है। न्यायालय ने इस मामले में सरकार से तीन हफ्ते के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा है।

इस पूरे मामले को लेकर स्थानीय लोगों और पवित्र स्नान के लिए यहाँ आ रहे सामान्य जनों में भी खिन्नता का भाव बना हुआ है। और ऐसा क्यों न हो, साधु-संत एवं अखाड़े तो कुंभ का एक अनिवार्य अंग होते हैं। यहाँ रहनेवाले और अस्थायी तौर पर तीर्थाटन के लिए इस पवित्र अवसर पर हरिद्वार आए लोगों में स्नान के साथ-साथ इन साधु-संतों से सतसंग करने और इनका आशीर्वाद पाने की उत्कट लालसा होती है।

इन साधु-संतों का आकर्षण विदेशी सैलानियों-श्रद्धालुओं को भी गहरे आकर्षित करता है। अपने जीवन में सांसारिक मोह-माया से मुक्त और धर्म की पताका ऊँची रखने, धर्म की रक्षा करने, अधर्मियों से उसे बचाने एवं धार्मिक परंपराओं को जीवित रखने को संघर्षरत इन साधु-संतों के मामले में धांधली ने लोगों की भावनाओं को ठेस पहुँचाया है। ये साधु-संन्यासी कुंभ में अपनी विशिष्ट उपस्थिति के दौरान अपने निर्विकार जीवन से लोगों को सात्विक संदेश देते हैं। वहीं अपने अनौपचारिक जीवनशैली से लोगों में उत्सुकता का सृजन भी करते हैं।

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यही वजह है कि शाही स्नान इस पर्व का सर्वाधिक आकर्षण होता है। इसमें तेरह अखाड़े शामिल होते हैं। इन तेरह अखाड़ों में संन्यासियों के सात अखाड़े हैं। इनमें जूना, अहवान, पंचाग्नि, निरंजनी, महानिर्वाणी, आनंद एवं अटल अखाड़ा प्रमुख हैं। बैरागियों के तीन अखाड़ों में अनी अखाड़ा, निर्मोही अनी अखाड़ा और अटल अखाड़ा, उदासीन अखाड़ों में पंचायती बाबा उदासीन, पंचायती नया उदासीन और सबसे आखिरी में स्नान करने वाला निर्मल अखाड़ा है।

अर्धकुंभ और कुंभ में इन्हीं अखाड़ों को प्राथमिकता के साथ स्नान करने का अधिकार प्राप्त है। स्नान के लिए विशेष सज-धज के साथ जब इन साधु-संतों-महंतों के अखाड़े निकलेंगे तो वह शोभायात्रा देखने लायक होगी और लोगों को इसका इंतजार है। उन्हें उम्मीद है कि कुंभ के दौरान इन अखाड़ों के बीच एक आकर्षक लय बनी रहेगी। आशा है कि तीन अणियों व अठारह अखाड़ों को अपने में समेटे बैरागी अखाड़े के 700 खालसे स्नान में भाग लेंगे। एक खालसे में नागा साधुओं की संख्या सैकड़ों से लेकर हजारों तक होती है।

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