चौदह जनवरी से शुरू महाकुंभ राज्य के लिए पहली बड़ी चुनौती है। इतने बड़े मेले के आयोजन का अनुभव रखने वाले अधिकारियों की कमी से राज्य जूझ रहा है। सत्तारूढ़ भाजपा के लिए भी यह कुंभ एक बड़ी चुनौती है
मकर संक्रांति से हरिद्वार में कुंभ का आगाज हो जाएगा, जब सूर्य 14 जनवरी को मकर राशि में प्रवेश करेंगे और संवत्सर मुख की स्थिति उत्पन्न होगी। हरिद्वार में कुंभ का योग कुंभ राशि में बृहस्पति की उपस्थित की खास स्थिति पर बनता है। इस काल का सर्वाधिक महत्वपूर्ण क्षण वह होता है जब सूर्य मेष राशि में संक्रमित होते हैं। जब सूर्य मेष राशि में हों और गुरु कुंभस्थ हों तो हरिद्वार में गंगा नदी में कुंभ के स्नान की परंपरा है।
राशियों की परिक्रमा के दौरान बृहस्पति एक राशि में करीब एक साल तक रहते हैं। बारह राशियों की यात्रा पूरी करते-करते बृहस्पति को 4332.5 दिन लगते हैं जो बारह वर्ष से करीब 48 दिन कम होते हैं। चूँकि कुंभ का आयोजन प्रति 12 वर्ष पर होता है तो सातवें और आठवें कुंभ के मध्य करीब एक वर्ष का अंतराल उत्पन्न हो जाता है। आठवें कुंभ तक पहुँचते-पहुँचते 96 वर्ष लग जाते हैं और यही कारण है कि हर आठवाँ कुंभ बारह वर्ष के बजाय 11 वर्ष पर ही आयोजित होता है।
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अगला कुंभ भी 11 वर्ष बाद ही आयोजित होगा। बीसवीं शताब्दी का तीसरा कुंभ 1927 में आया। सामान्य रूप से इसके बाद अगला कुंभ अवसर 1939 में आना चाहिए था लेकिन बृहस्पति की चाल के कारण अगला कुंभ 11 वर्ष बाद ही 1938 में आ गया था। इस शताब्दी में भी दूसरा कुंभ 11 वर्ष के अंतराल पर 2021 में ही आ रहा है।
इस बार हरिद्वार में कुंभ मेले में साढ़े छह करोड़ श्रद्धालुओं के आगमन का अनुमान है। कुंभ के पीछे यह कथा है कि पौराणिक काल में देव और दानवों के बीच चली वर्चस्व की जंग से सामान्य जन भी प्रभावित हुए और हर जगह उठे त्राहिमाम के कारण देवताओं ने दानवों से संधि कर ली और उन्हें समुद्र-मंथन में सहयोग के लिए राजी कर लिया। समुद्र-मंथन से चौदह रत्न निकले जिन्हें देवताओं और दानवों ने अपनी पसंद के अनुसार आपस में बाँट लिया। चौदहवें और अंतिम रत्न अमृत के लिए छीना-झपटी मच गई। इसी छीना-झपटी से अमृत कलश छलक पड़ा। मान्यता है कि जहाँ-जहाँ अमृत की बूंदें गिरीं वहीं कुंभ का आयोजन होने लगा। यह हिंदू धर्मानुयायियों का महापर्व है।
हरिद्वार में महाकुंभ के दौरान स्नान के लिए आने वाले श्रद्धालुओं का हर की पौड़ी समेत अन्य धाराओं पर भी स्नान की व्यवस्थाएँ की गई हैं। संभावना है कि कुंभ के दौरान मंसा देवी, दक्ष प्रजापति, भारत माता, चंडी देवी, वैष्णोदेवी मंदिर भी श्रद्धालुओं से गुलजार रहेंगे। कुंभ के लिए 130 वर्गकिलोमीटर क्षेत्र को कुंभ-क्षेत्र के रूप में अधिसूचित कर इसकी प्रशासनिक व्यवस्था मेला अधिकारी के हाथ में दी गई है। इस महाकुंभ में शाही स्नान का बड़ा आकर्षण रहता है।
शाही स्नान में तपोनिधि निरंजनी अखाड़ा पंचायती, पंचायती आनंद अखाड़ा, पंचदशनाम जूना अखाड़ा, पंच आह्वान अखाड़ा, अग्नि अखाड़ा, पंचायत अखाड़ा महानिर्वाणी, पंच अटल अखाड़ा, निर्वाणी अखाड़ा, दिगंबर अखाड़ा, निर्मोही अखाड़ा, पंचायती अखाड़ा, उदासीन पंचायती अखाड़ा, निर्मल पंचायती अखाड़ा के साधु भाग लेते हैं। शाही स्नान पर ही इन अखाड़ों की भव्य झाँकी दर्शनीय होती है।