नागाओं की चल-अचल संपत्ति और राजाओं जैसी शानो-शौकत कई बार चौंकाती है। विदेशी मीडिया इनको लेकर बेहद अचंभे ओर कौतुहल के भाव में रहता है। हालाँकि फिर भी भोग-विलास एवं सांसारिक सुखों से दूर इन कठोर साधकों का दर्शन अचंभित करने वाला ही होता है।
इस महाकुंभ से पूर्व गंगा नदी को राष्ट्रीय नदी की संज्ञा देकर भारत सरकार ने इसे प्रदूषण मुक्त करने का बीड़ा उठाया है लेकिन कुंभ आदि पर्वों के बाद गंगा का प्रदूषण प्रायः बढ़ता ही रहा है। उत्तराखंड में एनएसएस के चालीस हजार युवा सदस्य 'स्पर्श गंगा' अभियान चलाकर प्रतिकात्मक रूप से गंगा को स्वच्छ व निर्मल रखने की एक अनूठी पहल चला रहे हैं।
यूँ तो हिमालय के औषधीय तत्वों के संपर्क में आकर गंगा का जल अमृत तुल्य हो जाता है लेकिन गंगा तट पर बसी बस्तियों ने गंगा में कचरा डालकर इसके पतित पावनी स्वरूप को विकृत किया है। फिर भी गंगा का ब्रह्माजी के कमंडल और शंकरजी की जटाओं से भूलोक पर अवतरित होने की महिमा का महत्व आज भी बरकरार है। कुंभी की भीड़ इसका प्रमाण है।
उधर कुंभ में 26 जनवरी से 10 अखाड़ों में स्थापित होने वाली 52 फुट लंबी धर्मध्वजाओं की स्थापना की तैयारी जोरों पर है। इसकी स्थापना के बाद कुंभ का माहौल रंगीन बनाने वाले अखाड़े पेशवाइयाँ निकालकर शहर का वातावरण उत्सव जैसा बना देंगे। सात संन्यासी, दो उदासीन और एक निर्मल अखाड़े को महामंडलेश्वर नगर में जमीन दी गई है जबकि वैष्णव संप्रदाय से जुड़े तीन अखाड़ों को बैरागी कैंप में जगह दी गई है।
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जूना अखाड़े को 2.29 लाख, निरंजनी को 2.04 लाख, आनंद को 35 हजार, आहवान को 77 हजार, अग्नि को 75 हजार, महानिर्वाणी को 1.04 लाख, अटल को 27 हजार, बड़ा उदासीन को 30 हजार, नया उदासीन को 30 हजार, निर्मल को 30 हजार वर्गमीटर भूमि उपलब्ध कराई गई है। मेला प्रशासन का दावा है कि यह भूमि 1998 में इन अखाड़ों को आवंटित भूमि के मुकाबले अधिक है।
मेला प्रशासन के सम्मुख आगंतुकों की व्यवस्था अब भी एक चुनौती बनी हुई है। दावा किया जा रहा है कि 6 करोड़ से अधिक श्रद्धालु यहां आएंगे। यदि सचमुच इतने श्रद्धालु यहां आ गए तो सबको स्नान कराना भी दूभर हो जाएगा। उधर मेले के दौरान घटना-दुर्घटना में श्रद्धालुओं को समय रहते राहत देने के लिए ईएमआरआई की 20 एंबुलेंस मेला क्षेत्र में तैनात की गई हैं। इसमें से 10 एंबुलेंस तो मकर संक्रांति के स्नान से पूर्व ही उतार दी गईं। इसके अलावा मोटर बाइक से भी श्रद्धालुओं को किसी परेशानी से निजात दिलाने के लिए उन तक पहुँचने की व्यवस्था की जा रही है। मेले के लिए यह व्यवस्था पहली बार हो रही है।