राष्ट्र बिना धर्म अधूरा है
अखाड़ों में नागा संन्यासी महत्वपूर्ण
- महेश पांडे
जूना, आह्वान, पंचाग्नि, निरंजनी, महानिर्वाणी, आनंद, अटल, दिगंबर, निर्मोही, निर्माणी और उदासीन परंपरा के दो अखाड़ों को शाही स्नान में प्रतिभाग करने का अधिकार है इनमें निर्मल अखाड़ा सबसे अंत में स्नान करता है। सभी अखाड़ों में नागा संन्यासियों की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण होती है। कुंभ आए आम श्रद्धालुओं के लिए पूरे शरीर पर भभूत लगाए कड़ाके की ठंड में साधनारत नागा साधुओं को देखना भी एक विशिष्ट अनुभव होता है।
किसी नदी किनारे लगने वाले विश्व के इस सबसे बड़े मले में इस बार जहाँ जल संसद का कार्यक्रम जूना अखाड़ा बना रहा है। इसमें साधु-संतों के अलावा 55 देशों के एनजीओ भी शामिल हो रहे हैं जो जल संबंधी संरक्षण कार्यों का अनुभव रखते हैं। इस विचार मंथन द्वारा नदियों, सरोवरों व पोखरों सहित छोटी-छोटी धाराओं तक के संरक्षण की बाबत उपाय की कोशिशें की जा रही हैं।
देश के कोने-कोने से महाकुंभ में आईं साध्वियों ने भी गंगा को निर्मल रखने तथा इसे अविरल बहने देने के लिए ऐसी योजनाओं के विरोध का मन बनाया है जो इस पवित्र नदी के लिए घातक हैं। साध्वियां इस महाकुंभ का उपयोग इस विरोध के लिए कर इस धार्मिक अवसर को संदर्भ प्रदान करने की कोशिश में जुट गई हैं।
इस कुंभ से वह गंगा रक्षा आंदोलन का सूत्रपात करना चाह रही है। उल्लेखनीय है कि गंगा नदी के उद्गम स्थल के बाद इसके मार्ग में लगभग 558 परियोजनाओं पर काम चल रहा है या चलने वाला है। साध्वियों का मानना है कि इन परियोजनाओं के अमल में आने से गंगा 1,500 किलोमीटर की एक लंबी सुरंग में उलझा कर रह जाएगी। ऐसे में ये परियोजनाएँ पवित्र पावनी गंगा के लिए अभिशाप साबित होने वाली हैं।
इस महाकुंभ में देश भर से आए साधु-संन्यासियों ने इसे राष्ट्रीय एकता का स्वरूप प्रदान किया है। इतना ही नहीं यहाँ पहुँचने वाले विदेशी श्रद्धालुओं की संख्या में भी लगातार इजाफा हो रहा है। संत-महंतों की फौज के अलावा कुंभ में कथावाचकों और विख्यात धर्मोपदेशकों का भी जमावड़ा दिख रहा है। जम्मू-कश्मीर के ऊधमपुर जिले से आए पंचदशनाम जूना अखाड़े के महंत विजय गिरि भारत द्वारा पूरे विश्व में धर्म का झंडा फहराने के लिए महाकुंभ को एक माध्यम के रूप में देखते हैं।
वहीं अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने इस कुंभ के माध्यम से देश के स्वयंभू शंकराचार्यों को भी सबक सिखाने की बात कही है। उसका कहना है कि देश में चार पीठ आदिशंकराचार्य द्वारा स्थापित की गई थीं लेकिन कई शंकराचार्य स्वयंभू रूप में प्रतिष्ठित होकर हिंदू धर्म के उपहास का कारण बने हुए हैं। ऐसे शंकराचार्यों को सबक सिखाने के लिए कुंभ में प्रयास किए जाएँगे। उधर इस कुंभ में श्री श्री रविशंकर समेत बाबा रामदेव एवं तमाम कथावाचकों को भी प्रवचन करते या धर्मोपदेश देते देखा जा सकेगा।