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जानिए अखाड़ा शब्द का अर्थ और उत्पत्ति

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अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

शैव, वैष्णव और उदासीन पंथ के संन्यासियों के मान्यता प्राप्त कुल 13 अखाड़े हैं। 


 
पहले आश्रमों के अखाड़ों को बेड़ा अर्थात साधुओं का जत्था कहा जाता था। पहले अखाड़ा शब्द का चलन नहीं था। साधुओं के जत्थे में पीर और तद्वीर होते थे। अखाड़ा शब्द का चलन मुगलकाल से शुरू हुआ। अखाड़ा साधुओं का वह दल है जो शस्त्र विद्या में भी पारंगत रहता है।

कुछ विद्वानों का मानना है कि अलख शब्द से ही अखाड़ा शब्द बना है। कुछ मानते हैं कि अक्खड़ से या आश्रम से। कुछ अखंड शब्द से इसकी उत्पत्ति मानते हैं।

 
क्या अक्षवाट से बना अखाड़ा? : अखाड़ा, यूं तो कुश्ती से जुड़ा हुआ शब्द है, मगर जहां भी दांव-पेंच की गुंजाइश होती है, वहां इसका प्रयोग भी होता है। प्राचीनकाल में भी राज्य की ओर से एक निर्धारित स्थान पर जुआ खिलाने का प्रबंध किया जाता था, जिसे अक्षवाट कहते थे।
 
अक्षवाटः बना है दो शब्दों अक्ष और वाटः से मिलकर। अक्ष के कई अर्थ हैं, जिनमें एक अर्थ है चौसर या चौपड़, अथवा उसके पासे। वाट का अर्थ होता है घिरा हुआ स्थान। यह बना है संस्कृत धातु वट् से जिसके तहत घेरना, गोलाकार करना आदि भाव आते हैं। इससे ही बना है उद्यान के अर्थ में वाटिका जैसा शब्द।
 
चौपड़ या चौरस जगह के लिए बने वाड़ा जैसे शब्द के पीछे भी यही वट् धातु का ही योगदान रहा है। इसी तरह वाट का एक रूप बाड़ा भी हुआ, जिसका अर्थ भी घिरा हुआ स्थान है। अप्रभंष के चलते कहीं-कहीं इसे बागड़ भी बोला जाता है।
 
इस तरह देखा जाए तो, अक्षवाटः का अर्थ हुआ, ‘द्यूतगृह अर्थात जुआघर।’ अखाड़ा शब्द संभवत: यूं बना होगा- अक्षवाट अक्खाडअ, अक्खाडा, अखाड़ा। इसी तरह अखाड़े में वे सब शारीरिक क्रियाएं भी आ गईं, जिन्हें क्रीड़ा की संज्ञा दी जा सकती थी और जिन पर दांव लगाया जा सकता था।
 
जाहिर है प्रभावशाली लोगों के बीच शान और मनोरंज की लड़ाई के लिए कुश्ती का प्रचलन था, इसलिए धीरे-धीरे कुश्ती का बाड़ा अखाड़ा कहलाने लगा और जुआघर को अखाड़ा कहने का चलन खत्म हो गया।
 
अब तो व्यायामशाला को भी अखाड़ा कहते हैं और साधु-संन्यासियों के मठ या रुकने के स्थान को भी अखाड़ा कहा जाता है। हलांकि आधुनिक व्यायामशाला का निर्माण स्वामी समर्थ रामदान की देन है, लेकिन संतों के अखाड़ों का निर्माण पुराने समय से ही चला आ रहा है।
 
व्यायाम शाला में पहलवान कुश्ती का अभ्यास करते हैं। दंड, बैठक आदि लगाकर शारीरिक श्रम करते हैं वहीं संतों के अखाड़ों में भी शरीरिक श्रम के साथ ही अस्त्र और शास्त्र का अभ्यास करते हैं।

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