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अमृत पर्व कुंभ का महत्व

देवताओं का दुर्लभ कुंभ पर्व

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- पं. प्रेमकुमार शर्मा

SUNDAY MAGAZINE
प्रकृति के मनोहारी छटाओं से पूर्ण भारतीय भूमि के पराक्रमी सपूतों ने धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष की प्राप्ति हेतु विश्व ही नहीं, बल्कि देव लोक में भी अपने सतत पुरूषार्थ द्वारा सफलता का परचम लहरा दिया। घोर तपस्या के द्वारा प्राचीन समय में भागीरथ ने अपने पुरखों व संसार के मोक्ष के लिए अमृतमयी गंगा की जलधारा को पृथ्वी पर अवतरित किया।

जिसके पवित्र जल के स्पर्श, स्नान व दर्शन मात्र से मानव युग-युगान्तरों से सुख, संतोष, आरोग्यता व मोक्ष प्राप्त करता चला आ रहा है। माँ गंगा का जल सम्पूर्ण प्राणियों को तृप्त कर धरा पर जीवन अस्तित्व को बनाए रखने में परम सहायक है, इसे देव नदी भी कहा जाता है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार देव व दैत्य अति भयानक युद्ध करने लगते। जो मत्स्यपुराण के अध्याय 249 के इस श्लोक संख्या 4 से स्पष्ट है-
पुरा देवासुरे युद्धे हताष्च शतषः सुरैः। पुनः संजीवनीं विद्यां प्रयोज्य भृगुनन्दनः

तब देवताओं ने अमृत प्राप्त के उद्देश्य से दैत्यों को समुद्र मन्थन के लिए राजी कर लिया। वासुकी नाग रूपी रस्सी तथा विशाल मन्दराचल पर्वत की मथानी बनाकर समुद्र मन्थन आरम्भ हुआ जिसमें कालकूल विष, कामुधेन गाय, ऐरावत हाथी, लक्ष्मी सहित अनेक दुर्लभ रत्नों के बाद अमृत कलश का प्रार्दुभाव हुआ।

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ND
अमृत कुंभ को राक्षसों से बचाने के लिए इन्द्र पुत्र जयंत इसे लेकर तीव्रता से दौड़ने लगे। देव और दैत्यों में अमृत प्राप्ति के लिए बारह दिव्य दिनों जो मानव के बारह वर्षों के बराबर होते हैं, अति घोर युद्ध हुआ। प्रयाग, उज्जैन, हरिद्वार, नासिक उपरोक्त स्थानों पर अमृत-कलश से अमृत बूँद गिरे। यही वजह है कि कुंभ पर्व बारह वर्षों के क्रम में उपरोक्त स्थानों में मनाया जाता है।

ज्योतिषीय दृष्टि से भी यह पर्व अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि सूर्य, चंद्र और बृहस्पति ग्रहों के विशेष राशि योग में ही कुंभ महापर्व आता है। इन ग्रहों ने ही इस अमृत कलश को विशेष सुरक्षा प्रदान की थी। बृहस्पति के कुंभ राशि से होते हुए सूर्य के मेष राशि में प्रवेश करने से हरिद्वार में कुंभ महापर्व का योग बनता है।

हमारे तत्वज्ञ ऋषियों ने जल को पंच तत्त्वों में प्रमुख तत्व माना है। उन्होंने अमृततुल्य गंगाजल को खोज निकाला और उसकी भूरि-भूरि प्रशंसा वेद-पुराणों ने भी की। यह आरोग्यता व आयु को बढ़ाने वाला है। भारत के ऐसे पवित्रतम जल स्थलों को देवताओं ने भी कलश में सुरक्षित रखने योग्य माना और उसमें अमृत की बूँदें घोल उसे और भी गुणकारी बना दिया। आज इन पवित्र अमूल्य जलस्रोतों के विलुप्त हो जाने का गम्भीर खतरा मँडरा रहा है।

कुंभ महापर्व में गंगा-स्नान से पाप मिट जाते हैं और मोक्ष प्राप्ति के रास्ते प्रशस्त होते हैं। मेष संक्रान्ति 14 अप्रैल को इस कुंभ महापर्व का प्रमुख स्नान है और शाही स्नान का चतुर्थ क्रम होगा। जो अमावस होने से और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। इससे पहले कुंभ संक्राति में श्रीमहाशिवरात्रि के अवसर पर 12 फरवरी को कुंभ का प्रथम शाही स्नान और सोमवती अमावस्या 15 मार्च को दूसरा शाही स्नान, तीसरा शाही स्नान हनुमान जयंती (चैत्र पूर्णिमा) पर हो चुका है। कुंभ पर्व का शाही स्नान बड़ा ही रोचक, पुण्यकारी व दर्शनीय होता है।

इस स्नान में संत, महात्माओं सहित शंकराचार्यादि पुण्यपुरुष अपने गुणी शिष्यों के साथ प्रमुख रूप से भाग लेते हैं। 27 मई को 2010 वैशाखी पूर्णिमा के अवसर पर इस कुंभ पर्व का अन्तिम स्नान सम्पन्न होगा। अतः पर्व कुंभ को गौरवशाली बनाएँ रखने हेतु छल-कपट छोड़ उसे प्रदूषण मुक्त बनाना होगा तभी देवता कुंभ के बहाने इन जल स्रोतों में अमृत छलकाएँगे।

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