'रेवा तीरे तप: कुर्यात मरणं जाह्नवी तटे।' अर्थात तपस्या करना हो तो नर्मदा के तट पर और शरीर त्यागना हो तो गंगा तट पर।
'प्र' का अर्थ होता है बहुत बड़ा तथा 'याग' का अर्थ होता है यज्ञ। ‘प्रकृष्टो यज्ञो अभूद्यत्र तदेव प्रयागः'- इस प्रकार इसका नाम ‘प्रयाग’ पड़ा। दूसरा वह स्थान जहां बहुत से यज्ञ हुए हों।
ब्रह्मा ने किया था यज्ञ : पृथ्वी को बचाने के लिए भगवान ब्रह्मा ने यहां पर एक बहुत बड़ा यज्ञ किया था। इस यज्ञ में वह स्वयं पुरोहित, भगवान विष्णु यजमान एवं भगवान शिव उस यज्ञ के देवता बने थे।
तब अंत में तीनों देवताओं ने अपनी शक्ति पुंज के द्वारा पृथ्वी के पाप बोझ को हल्का करने के लिए एक 'वृक्ष' उत्पन्न किया। यह एक बरगद का वृक्ष था जिसे आज अक्षयवट के नाम से जाना जाता है। यह आज भी विद्यमान है।
अमर है अक्षयवट : औरंगजेब ने इस वृक्ष को नष्ट करने के बहुत प्रयास किए। इसे खुदवाया, जलवाया, इसकी जड़ों में तेजाब तक डलवाया। किन्तु वर प्राप्त यह अक्षयवट आज भी विराजमान है। आज भी औरंगजेब के द्वारा जलाने के चिन्ह देखे जा सकते हैं। चीनी यात्री ह्वेन सांग ने इसकी विचित्रता से प्रभावित होकर अपने संस्मरण में इसका उल्लेख किया है।
इस देवभूमि का प्राचीन नाम प्रयाग ही था, लेकिन जब मुस्लिम शासक अकबर यहां आया और उसने इस जगह के हिंदू महत्व को समझा, तो उसने इसका नाम 1583 में बदलकर इलाहाबाद रख दिया।
अकबर ने हिंदू एवं मुस्लिम दोनों धर्मो को मिलाकर एक नया धर्म चलाया था जिसका नाम उसने 'दीनेइलाही' रखा। इस प्रकार 'इलाही' जहां पर 'आबाद' हुआ वह इलाहाबाद कहलाया। आज प्रयाग को इलाहाबाद के नाम से जाना जाता है।
- shatayu allahabad kumbh mela 2013