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आज के शुभ मुहूर्त

(दशमी तिथि)
  • तिथि- आषाढ़ शुक्ल दशमी
  • शुभ समय- 7:30 से 10:45, 12:20 से 2:00
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  • राहुकाल-प्रात: 10:30 से 12:00 बजे तक
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कुंभ पर्व का प्रारंभ कब और क्यों हुआ था?

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हमें फॉलो करें कुंभ मेला
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कुंभ का समारम्भ कब और क्यों हुआ था तथा उसे चार ही स्थानों तक सीमित क्यों माना गया। इन अति-प्रश्नों के संतोषप्रद उत्तर अभी तक नहीं मिल पाया है, पर जो चेष्टाएं इस दिशा में की गई हैं वे निश्चय ही महत्वपूर्ण हैं।

भारतीय दृष्टि ने 'इतिहास पुराणाभ्याम्‌' कहकर इतिहास और पुराण में भेद नहीं माना, परन्तु आधुनिक युग में इतिहास पुराण से अधिक मान्य हो गया है।

कहीं-कहीं वह पुराण-विरोधी भी दिखाई देता है। विदेशी काल-दृष्टि सीधी रेखा का अनुसरण करती है, किन्तु भारतीय काल-दृष्टि आवर्तनमूलक है। उसमें लयात्मकता है जो भारतीय संस्कृति के लीलापरक दृष्टिकोण में संगति रखती है और भक्ति भाव से भी सम्पृक्त सिद्ध होती है।

कृष्णभक्तयात्मकं तत्वं लयः सर्व सुखावहः।

लीला-तत्व श्रीमद्‌भागवत का सार है और उसे दर्शन और व्यवहार दोनों का बल मिला है। भक्ति के प्रायः सभी सम्प्रदायों ने लीला-तत्व के साथ लय-प्रलय को आनंदात्मक माना है तथा उसे विराट रूप में देखकर सृष्टिव्यापी कल्पना की है जो किसी काल में समाप्त नहीं होती और न ही अपनी महत्ता खोती है। प्रयागस्थ वट-वृक्ष इसी अडिग आस्था का प्रतीक है। प्रलय के बाद भी उसके पत्ते पर लीलामय कृष्ण के दर्शन बाल-रूप में होता है। ऐसी भावना लोक ग्राह्य है तथा कवि-प्रेरक भी।

यथा-
करारविन्देनपदारविन्दं
मुखारविन्दे विनिवेशयन्तम्‌।
वटस्यपत्रस्यपुटे शयानं,
बालमुकुंदं शिरसा स्मरामि॥

किसी भी अन्य कुंभ स्थल में आस्था का ऐसा विशाल, आकाशव्यापी, अनंत विराट वृक्ष जो निरंतर प्रेरणापद हो, दिखायी नहीं देता और न गंगा-यमुना जैसी प्रत्यक्ष तथा सरस्वती रूपी परोक्ष-नदी की कल्पना की गई है।

त्रिवेणी 'मृत' और 'अमृत' दोनों तत्वों के समीकरण से उत्पन्न ऐसी धारणा है जो मृत्यु पर मानसिक रूप से विजय प्राप्त करके जीवन में व्याप्त अमृत-तत्व को सर्वसुलभ बनाने का संकल्प करती है। इसमें इतिहास और पुराण दोनों में सहायक होते हैं। कोई किसी का निषेध या विरोध नहीं करता, क्योंकि उसकी धार्मिक दृष्टि मूलतः सांस्कृतिक दृष्टि है।

आज विज्ञान भी मृत्यु पर विजय प्राप्त करने की भौतिक प्रक्रिया खोज रहा है, मृत्यु को एक रोग के रूप में देखने का साहस कर रहा है। भारतवर्ष ने आत्मा पर आस्था करके मानसिक रूप से मृत्यु पर विजय प्राप्त करने का विज्ञान रच दिया था। 'ग्यानिहु ते अति बड़ बिग्यानी' की धारणा व्यक्त करके भारत ने ज्ञान के ऊपर विज्ञान को माना है। अब विज्ञान का अर्थ छोटा हो गया है।
- वेबदुनिया संदर्भ

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