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कुंभ में नाइयों और पंडितों की चांदी

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देश के सबसे बड़े आध्यात्मिक समागम महाकुंभ में नाइयों की पौ बारह है क्योंकि उत्तरप्रदेश के इलाहाबाद में चल रहे महाकुंभ में रुकने वाले श्रद्धालु अपना मुंडन भी करवा रहे हैं।

नाइयों, पंडो, कुम्हारों और पुश्तैनी काम करने वाली अन्य जातियों के उत्पादन की मांग बढ़ी है। गंगा तट पर पूजा अर्चना कराने वाले एक पंडे का कहना है कि बाबूजी हम तो चाहते हैं कि कुंभ हर साल आए ताकि हम जैसे गरीबों की कमाई का एक बड़ा जरिया बन सके। इतने बडे कुंभ से कमाई भी बड़ी हो जाती है। छोटा धंधा भी भगवान के आर्शीवाद से बड़ा बन जाता है।

कुंभ में हवन पूजन कराने वाले एक पंडित जी की चाहत है कि कुंभ 12 वर्ष पर नहीं हर साल आए। प्रयाग नगरी में संगम किनारे बसे कीटगंज मुट्ठीगंज, सीएमपी कॉलेज सहित तमाम इलाकों में पंडित बड़ी संख्या में रहते हैं। यहां पंडे भी रहते हैं जो कुंभ और महाकुंभ जैसे आयोजनों में अच्छा कमा लेते हैं। गांव और देहातों से लाखों की संख्या में लोग आते हैं। कर्मकांड के बहाने इन्हीं लोगों से पंडितों की अच्छी कमाई होती है।

सेक्टर पांच में संगम तट से कुछ दूर ही एक पंडित जी बैठे हैं उनके हाथ में रुद्राक्षों की माला और सामने हवन पूजन की सारी सामग्री मौजूद है। पूछने पर अपने आपको राम पूजन शास्त्री बताते हैं।

शास्त्री जी ने बताया कि सच कहिए तो महाकुंभ का वर्षो से इंतजार रहता है। अब 55 दिनों तक अपनी अच्छी कमाई होगी। दिन भर में करीब 2000 रुपए की कमाई हुई है। बहुत सारी खाद्य सामग्री भी मिली है। अब इसे लेकर शाम को घर चला जाऊंगा। कल फिर यहां आऊंगा।

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शास्त्रीजी कहते हैं कि इनकी तरह ही इनके परिवार के दो और लोग कर्मकांड कराने के लिए अन्य सेक्टरों में अपनी दुकानें लगाए हुए है। शास्त्री की बात पर यकीन करें तो यदि एक परिवार में चार पंडित हुए तो महाकुंभ मे एक दिन की आय करीब 8000 रुपए प्रतिदिन हुई। अंदाजा लगाइए कि 55 दिनों में इस परिवार की कमाई कितनी होगी। हां ये जरूर है कि कमाई घटती बढ़ती रहती है।

महाकुंभ में पंडितों के अलावा पूडी-कचौड़ी और चाय की दुकानों की भरमार लगी हुई है। ननकू चाय वाले ने बताया कि वह शाम तक 100 गिलास चाय बेच चुका था। एक गिलास चाय की कीमत पांच रुपए ही है। शाम करीब पांच बजे तक ही इसकी कमाई पांच सौ रुपए को पार कर चुकी थी।

महाकुंभ में नाइयों की भी काफी कमाई हो रही है। ग्रामीण स्टाइल में झोला लिए इन नाइयों की पंडितों के साथ पहले से ही समझौता होता है। ये कर्मकांडी पंडितों से थोड़ी दूर पर ही बैठे होते हैं। ये दाढ़ी बनाने के 10 रुपए और बाल काटने के 20 रुपए लेते हैं।

अहमद अली नामक एक नाई ने कहा कि भाई साहब महाकुंभ के दौरान मेला क्षेत्र के भीतर जितनी कमाई हो जाती है उतनी कमाई तो शहर में बने सैलून में भी नहीं होती है। इसके अलावा दो बेटे भी है जो इसी कुंभ में बाल काटने का काम करते हैं। अल्लाह की मेहरबानी से शाम तक अच्छी कमाई हो जाती है। (वार्ता)

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