इस दान से अक्षय पुण्य मिलता है। महाभारत में कहा गया है- परिस्थितिवश व्यक्ति जो कुछ पाप कर बैठता है, वह गाय की चमड़ी के बराबर भूमि दान से खत्म हो जाता है।
इस दान से अनेक श्रेष्ठ फल मिलते हैं। राजा शासन करते समय जो पाप करता है वह उसके भूमि दान से नष्ट हो जाता है। दुष्ट लोगों को अपकर्म की माफी भूमिदान से हो जाती है।
स्मृतियों में इस दान की बड़ी महिमा की गई है। इस दान से अनेक पाप नष्ट हो जाते हैं। यह जरूरी नहीं है कि सिर्फ राजा ही भूमि दान करें, जो लोग जमीन के मालिक हैं, वे भी अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान कर सकते हैं।
तीर्थराज प्रयाग में भूमि दान का बहुत महत्व है। सदियों से यहां के तीर्थ पुरोहितों को धनी, सम्पन्न लोग और राजा-महाराजा भूमि देते रहे हैं। राजाओं ने जो जमीन ब्राह्मणों को दान में दी है उसके दान-पक्ष भी मौजूद हैं। मुस्लिम शासकों ने भी प्रयाग के तीर्थ पुरोहितों को गांव और जमीन दान में दी है।