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(मां ताप्ती जयंती)
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कुंभ में स्वामी अड़गड़ानन्द ने कहा- एकनिष्ठ बनें

- आलोक त्रिपाठी (इलाहाबाद से)

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हमें फॉलो करें इलाहाबाद कुंभ मेला
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दुनिया में सबसे अधिक धार्मिक, भजन-चिन्तन व पूजा पाठ करने वाला हिन्दू ही है, परन्तु आश्चर्य की बात तो यह है कि धर्म के प्रति इतना आस्थावान हिन्दू जीवन के अंतिम समय तक यह निश्चय ही नहीं कर पाता कि हमारा इष्ट कौन है। यह बातें परमहंस आश्रम शक्तेषगढ़ के स्वामी अड़गड़ानन्दजी महराज ने कही।

स्वामी अड़गड़ानन्द ने कहा, 'इन सबके मूल में देखा जाए तो बहुदेववाद का प्रचार ही एकनिष्ठ होने में सबसे अधिक बाधक सिद्ध होता है। अपने-अपने देवताओं के लिए लोग झगड़ा करते नजर आते हैं। किसी को यह मालूम नहीं कि शाश्वत कौन है और किसकी उपासना से शाश्वत धाम की प्राप्ति होती है। इसलिए धार्मिक उथन-पुथल को छोड़ मात्र एक भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण ही इसका समाधान है।

उन्होंने कहा कि प्रभु को पाने की नियत विधि का आचरण ही धर्माचरण है और जो उसे करता है वह शीघ्र ही धर्मात्मा हो जाता है।

कुंभ क्षेत्र के सेक्टर आठ में भक्तों को संबोधित करते हुए स्वामीजी ने कहा कि बड़े भाग्य से मनुष्य शरीर मिला है। यह देवताओं को भी दुर्लभ है। देवता अच्छी करनी के फलस्वरुप भोगमात्र भोगते हैं, लेकिन स्वर्ग भी स्वल्प है इसलिए देवता भी मानव तन से आशावान हैं। यह शरीर साधन के धाम के साथ-साथ मुक्ति का दरवाजा भी है। इसको पाकर जिसने अपना परलोक नहीं सुधारा, वह जन्मान्तरों तक दुख पाता है।

स्वामी अड़गड़ानन्द ने कहा कि व्यक्ति इसके लिए काल, कर्म और ईश्वर को दोष देता है। इसलिए यदि मनुष्य शरीर मिला है और हम इसे परलोक संवारने के लिए उपयोग नहीं करता तो न काल का दोष है, न कर्म का दोष है न ईश्वर का। सब दोष व्यक्ति का है।

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