Festival Posters

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia

आज के शुभ मुहूर्त

(देवशयनी एकादशी)
  • तिथि- आषाढ़ शुक्ल एकादशी
  • शुभ समय-9:11 से 12:21, 1:56 से 3:32
  • त्योहार/व्रत/मुहूर्त-देवशयनी एकादशी, चातुर्मास प्रारंभ, पंढरपुर मेला, मोहर्रम ताजिया
  • राहुकाल- सायं 4:30 से 6:00 बजे तक
webdunia

कुंभ मेला : 'अमृत मंथन'

Advertiesment
हमें फॉलो करें प्रयाग कुंभ मेला
FILE
भारत के नाट्‌य शास्त्र में जिन नाटकों के मंचन का उल्लेख मिलता है उनमें 'अमृत मंथन' सर्वप्रथम गिना जाता है। भारतीय नाटक देवासुर-संग्राम की पृष्ठभूमि में जन्मा, इसे जानने के बाद कुंभ का महत्व और बढ़ जाता है और प्राचीनता भी अधिक सिद्ध होती है।

'अमृत मंथन' के अभिनय से पूर्व कुंभ-स्थापन का उल्लेख भरत ने किया है पर वह पूजा के अंग रूप में ग्रहण किया गया है। 'अमृत कुंभ' से उसका सीधा संबंध नहीं है, किन्तु कुंभ की कल्पना अवश्य उससे सम्बद्ध मानी जा सकती है।

कुम्भं सलिल-सम्पूर्ण पुष्पमालापुरस्कृत्‌म।
स्थापयेद्रंगमध्ये तु सुवर्ण चात्र दापयेत्‌
एवं तु पूजनं कृत्वा मया प्रोक्तः पितामहः।
आज्ञापय विभौ क्षिप्रं कः प्रयोगाः प्रयुज्यताम्‌।
सचेतनो स्म्युक्तो भगवता योजयामृतमंथनम्‌ एतदुत्साहजननं सुरप्रीतिकरः तथा

अर्थः-रंगपीठ के मध्य में पुष्पमालाओं से सज्जित जल से पूर्ण कुंभ स्थापित करना चाहिए और उसके भीतर स्वर्ण डालना चाहिए।

इस प्रकार पूजन करके मैंने ब्रह्मा से कहा- 'हे वैभवशाली, शीघ्र आज्ञा प्रदान करें कि कौन-सा नाटक खेला जाए। तब भगवान ब्रह्मा द्वारा मुझसे कहा गया-'अमृत मंथन का अभिनय करो। यह उत्साह बढ़ाने वाला तथा देवताओं के लिए हितकर है।

वह नाट्‌य-प्रकार 'समवकार' कहलाता था और भरत द्वारा उसका अभिनय धर्म और अर्थ को सिद्ध करने वाला माना गया है। देवताओं के साथ शंकर की अभ्यर्थना भी की गई। 'अमृत मंथन' से इस प्रकार ब्रह्मा-विष्णु-महेश की एकता और देवताओं की प्रसन्नता अभीष्ट रही, जो आज तक चली आ रही है।

'त्रिपुरा-दाह' का अभिनय 'अमृत मंथन' के बाद हुआ, भरत मुनि के इस कथन से 'अमृत मंथन' की कथा व महत्ता और बढ़ जाती है। नाट्‌यवेद की रचना जम्बूद्वीप के भरत खण्ड में पंचम वेद के रूप में मानी गई, क्योंकि शूद्र जाति द्वारा वेद का व्यवहार उनके समय निषिद्ध माना जाता था।

यह पांचवां वेद सब वर्णों के लिए रचा गया, क्योंकि भरत शूद्र जाति को भी अधिकार सम्पन्न बनाना चाहते थे, साथ ही अन्य वर्णों का भी उन्हें ध्यान था। 'सार्ववर्णिकम्‌' शब्द इसलिए महत्वपूर्ण है।

यथा-
न वेदव्यवहारों यं संश्रव्यं शूद्रजातिषु।
तस्मात्सृजापरं वेदं पंचमं सार्ववर्णिकम्‌।

कुंभ का महत्व भी इसी प्रकार सभी वर्णों के समन्वित है। किसी वर्ण का गंगा स्नान अथवा कुंभ-स्नान में निषेध नहीं है। वर्णेत्तर लोग भी स्नान करते रहे हैं।

विष्णु के चरणों से चौथे वर्ण की उत्पत्ति मानी गई है और गंगा भी विष्णु के चरणों से निकली हैं ऐसी पौराणिक मान्यता है। दोनों का विशेष संबंध सांस्कृतिक दृष्टि से उपकारक एवं प्रेरक सिद्ध होगा। इस प्रकार कुंभ हर प्रकार के भेदभाव का निषेध करता है।
- वेबदुनिया संदर्भ

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi