इलाहाबाद। इलाहाबाद में चल रहे कुंभ मेले में बड़ा उदासीन अखाड़े की पेशवाई के दौरान उस समय विवाद खड़ा हो गया जब चांदी के सिंहासन पर बाबा रामदेव को विराजमान कर उनकी भव्य सवारी निकाली गई। अखाड़े के साधु-संतों ने फूलों की बारिश कर बाबा रामदेव का शाही अंदाज में स्वागत किया।
दूसरे अखाड़ों के महंतों ने इस पर आपत्ति उठाते हुए कहा कि यह एक गलत परंपरा की शुरुआत है। जूना अखाड़े के पूर्व महामंडलेश्वर स्वामी पंचानंद गिरि का कहना है कि पेशवाई के रथों में चांदी के सिंहासन पर सिर्फ महामंडलेश्वरों या किसी वरिष्ठ संत को ही बिठाए जाने की परम्परा है और रामदेव तो संत हैं ही नहीं। उदासीन अखाड़े ने रामदेव की सवारी निकालकर एक गलत परंपरा की शुरुआत कर दी है।
गिरीजी ने यह भी कहा कि चूंकि बाबा रामदेव किसी आखाड़े या साधु समाज से जुड़े नहीं है इसलिए वे संत भी नहीं हो सकते। उन्होंने तो धर्म को व्यवसाय बना रखा है तो कैसे उनका सम्मान किया जा सकता है। हम इसका विरोध करते हैं।
लेकिन बाबा रामदेव का कहना है कि अखाड़े के पंचों ने उन्हें जैसा निर्देश दिया उन्होंने वैसा ही किया। बाबा रामदेव को इस महाकुंभ में क्रांति के लक्षण दिखाई दे रहे हैं और उनका कहना है कि साल 2013 के अंत में देश में बड़ा बदलाव होने की उम्मीद है।
गौरतलब है कि गुरुवार को उदासीन संप्रदाय के बड़े पंचायती अखाड़े ने अपनी भव्य पेशवाई निकाली जिसमें लगभग 50 मंडलेश्वर शामिल हुए। तीन किलोमीटर लंबे इस जुलूस को 12 किलोमीटर का सफर तय करने में 4 घंटे से ज्यादा लगे।
इस दौरान, हाथी, घोड़े, ऊंट और रथ पर विराजमान 2000 से ज्यादा साधु-संतों का जगह-जगह स्वागत किया गया। (एजेंसी)