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कुंभनगरी में 'ऊँ जय गंगे माता' की गूँज

- महेश पाण्डे

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हमें फॉलो करें महाकुम्भ
SUNDAY MAGAZINE
25 जनवरी को दो अखाड़ों के रमता पंचों ने कुंभनगरी में प्रवेश क्या किया कि पूरी कुंभनगरी का माहौल संतोत्सव के रूप में परिवर्तित हो गया। धर्मध्वजाओं की स्थापना शुरू होकर अखाड़ों के पेशवाई जुलूस सांस्कृतिक वातावरण को और अधिक आकर्षक बना रहे हैं। धर्म का शोर पूरी धर्मनगरी में सिर चढ़कर बोल रहा है।

नागा संन्यासियों को देखने तथा रमते पंचों के स्वागत के लिए धर्मनगरी के लोगों ने पलक पांवड़े बिछा दिए हैं। सुबह-शाम गंगाजी की आरती में 'ऊँ जय गंगे माता' की स्वर लहरियों के श्रवण से श्रद्धालुओं के मन तृप्त हो रहे हैं। तरह-तरह की स्तुतियों के संगीतमय कैसेटों का बाजार भी यहाँ फल-फूल रहा है। अनुराधा पौडवाल से लेकर अनूप जलोटा, हरिओम शरण सहित जगजीत सिंह, चित्रा सिंह, विपिन सचदेव, राजन-साजन सरीखे गायकों के स्वर में महाकुंभ का महात्म्य गूँज रहा है।

पेशवाइयों के लिए रमता पंचों का प्रवेश शुरू होते ही धर्मध्वजाएँ फहराने के क्रम के बाद पेशवाइयों का क्रम जारी है। इसके लंबा चलने की उम्मीद है। अखाड़ों की अपनी-अपनी परंपराएँ भी यहाँ देखने को मिल रही हैं। अखाड़ों से जुड़े साधु अखाड़ों के दंड विधान से भी संचालित होते हैं। इन अखाड़ों में रमता पंचों या अष्ट कौशल के महंतों की उपस्थिति में किसी भी गलत काम में संलिपत साधु को सजा सुनाई जाती है इसलिए संत काफी संभल-संभलकर चलते हैं। पेशवाइयों का भी काफी महात्म्य होता है।

कहा जाता है कि 12 साल बाद लगने वाले कुंभ में स्नान का जितना महत्व है उतना ही महत्व अखाड़ों की शाही पेशवाइयों तथा दुर्लभ साधु-संतों के दर्शन से मिल जाता है। शाही पेशवाई मार्ग पर पड़ने वाली कई धर्मशालाओं व होटलों में बड़ी इमारतों के छज्जों तक को साफ-सुथरा रख पेशवाई का पुष्प वर्षा से स्वागत किया जा रहा है। शाही स्नान से पूर्व शहर में सात पेशवाइयाँ निकलनी हैं। जिनमें से जूना अखाड़े की प्रथम पेशवाई निकल चुकी है। शेष निकलना जारी है। कुंभ के अवसर पर कुंभ नगरी में स्थापित मीडिया सेंटर की दीवारों को भी कुंभ गाथा के अख्यानों से चिह्नित किया जा रहा है।

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मीडिया सेंटर से पूरे विश्व के मीडिया को कुंभ का सकारात्मक संदेश जाए यह व्यवस्था सुनिश्चित हो रही है। कुंभ गाथा चित्रावलियों से पौराणिक उपाख्यानों का विवरण भी चस्पां किया गया है। कुंभ का महात्म्य हर श्रद्धालु को लुभाता रहा है। महात्मा गाँधी 1915 के कुंभ में हरिद्वार आए थे। उन्होंने हरिद्वार में सातों दिन बिताकर गोपाल कृष्ण गोखले के भारत सेवक समाज के स्वयंसेवक की भूमिका भी निभाई। उनके साथ बा यानी कस्तूरबा गाँधी भी थीं।

पाँच अप्रैल को हरिद्वार पहुँचे बापू श्रवण नाथ बगीचे में ठहरे थे। इसे आज श्रवणनाथ नगर कहा जाता है। 6 अप्रैल, 1915 को गुरुकुल के संस्थापक स्वामी श्रद्धानंद जिन्हें महात्मा मुंशी राम कहा जाता था के साथ मिले। उन्होंने गुरुकुल का भ्रमण भी किया। 7 अप्रैल को ऋषिकेश में लक्ष्मण झूला और स्वर्गाश्रम घूमने के बाद स्वामी नारायण एवं मंजलनाथ से भी मुलाकात की। आठ अप्रैल को ज्वालापुर महाविद्यालय हिंदू सभा और ऋषिकुल विद्यापीठ घूमे। 8 अप्रैल, 1915 को ही गुरुकुल के महात्मा मुंशीराम (स्वामी श्रद्धानंद) ने महात्मा की उपाधि से गांधी जी को विभूषित किया।

इस बार कुंभ को विशेष बनाने के लिए कुंभ-कलश की स्थापना के लिए भी भूमा निकेतन संस्था जुटी है। इसमें भारत की सभी नदियों के जल व तीर्थों की मिट्टी को समेटकर रखने की योजना है। एक टन वजन के कलश की स्थापना शाही स्नान से पूर्व किए जाने की योजना है। इस कलश को भारत की एकता व अखंडता का संदेशवाहक बनाया जाए, इसके प्रयास चल रहे हैं।

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कुंभ के लिए जहाँ तमाम साधु-संतों की पेशवाई का क्रम जारी है और शाही स्नान की तैयारियाँ चल रही हैं। वहीं बैरागी साधु-संतों का जमावड़ा वृंदावन में होकर वहीं पहला स्नान करने की परंपरा है। उस स्नान के बाद ही बैरागी कुंभ स्नान के लिए हरिद्वार आएँगे। बैरागी संतों का हरिद्वार के कुंभ में स्नान से पूर्व वृंदावन में जुटना शुरू हो गया है। 1760 के कुंभ में 10 अप्रैल को हर की पौड़ी में स्नानक्रम को लेकर हुए संघर्ष में 18 हजार बैरागी मारे गए।

इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना के बाद बैरागियों ने मथुरा वृंदावन में अलग से बैरागी संतों की कुंभ परंपरा शुरू कर दी। बाद में अंग्रेजों ने इनमें सुलह कराया और अखाड़ों के प्रमुखों में 'बीती ताहि बिसार दे आगे की सुध लेहि' वाक्य को चारितार्थ किया। धर्म संस्कृति के उत्थान उसके संरक्षण व संवर्द्धन के लिए एक साथ चलने का संकल्प ले ही लिया।

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