Biodata Maker

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia

आज के शुभ मुहूर्त

(श्रावण सोमवार)
  • तिथि- श्रावण कृष्ण चतुर्थी
  • शुभ समय- 6:00 से 7:30 तक, 9:00 से 10:30 तक, 3:31 से 6:41 तक
  • जयंती/त्योहार/व्रत/मुहूर्त-गणेश चतुर्थी व्रत, श्रावण सोमवार
  • राहुकाल-प्रात: 7:30 से 9:00 बजे तक
webdunia

कुम्भ मेला : हिंदू दशनामी संतों की मठ परंपरा

Advertiesment
हमें फॉलो करें कुम्भ मेला
FILE
गोसाईं या बाबाजीयों की दशनामी मठ परंपरा और समाज का प्रचलन शंकराचार्य के समय से चला आ रहा है। शंकराचार्य ने ही उक्त समाजों की स्थापनी की थी। उन्होंने ही देश के चार कोनों में चार मठ स्थापित किए। बाद में दशनामियों के दस संप्रदाय की शुरुआत हुई। उक्त संप्रदाय में हिंदुओं की सभी जाति के लोग शामिल हुए। यह जातिबंधन तोड़ने की शायद सबसे पुरानी कोशिश थी

मठ की स्थापना के बाद दशनामियों ने 200 वर्षों बाद मठिकाओं की स्थापना की। इन्हें बाद में मढ़ी भी कहा गया। यह मढ़ियां संख्या में 52 थीं। 27 मढ़ियां भारतीयों की, चार मढ़ियां वनों की और एक मढ़ी लताओं की कहलाती है।

पर्वत, सागर और सरस्वती पदधारियों की कोई मढ़ी नहीं है। बावन मढ़ियों के अंतर्गत यह सारी संन्यास परंपरा समाजसेवा के लिए भी सक्रिय हैं। बाद में इनमें भी दंढी और गोसाई के दो भेद हुए। तीर्थ आश्रम सरस्वती एवं भारती नामधारी संन्यासी दंडी कहलाए। शेष गोसाइयों में गिने गए। बाद में इन्हीं दशनामी संन्यासियों के अनेक अखाड़े प्रसिद्ध हुए जिनमें से सात पंचायती अखाड़े आज भी सक्रिय हैं।

webdunia
FILE
कुम्भ में स्नान के लिए श्रीपंचायती तपोनिधि, निरंजनी अखाड़ा, श्रीपंचायती आनंद अखाड़ा, श्रीपंचायती दशनाम जूना अखाड़ा, श्रीपंचायती आवाहन अखाड़ा, श्रीपंचायती अग्नि अखाड़ा, श्रीपंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा और श्रीपंचायती अटल अखाड़ा वर्षों से भाग लेते रहे हैं।

बाद में भक्तिकाल में इन शैव दशनामी अखाड़ों की तरह रामभक्त वैष्णव साधुओं के भी संगठन खड़े हुए। इन्हें अणि का नाम दिया गया। अणि यानि सेना। वैष्णव बैरागी साधुओं ने भी धर्म के संदर्भ में यह अखाड़े गठित किए, जिनमें तीन मुख्य थे। दिगम्बर अखाड़ा, श्रीनिर्वाणी अखाड़ा, श्री निर्मोही अखाड़ा। इनके अंतर्मन अनेक इकाइयां और भी थीं।

संन्यासियों और बैरागियों के लिए कुम्भ के स्नान को लेकर भी द्वंद्व का इतिहास रहा है। लेकिन आजकल इनकी संयुक्त समिति गठित होने और सरकार द्वारा मान्यता दिए जाने से संघर्ष की स्थिति खत्म हो गई है।

साधुओं की अखाड़ा परंपरा के बाद गुरु नामकदेव के पुत्र श्रीचंद्र द्वारा स्थापित उदासीन संप्रदाय भी श्रीपंचायती अखाड़ा, बड़ा उदासीन एवं श्रीपंचायती अखाड़ा नया उदासीन नाम से सक्रिय हैं।

पिछली शताब्दी में सिख साधुओं के नए संप्रदाय निर्मल संप्रदाय और उसके अधीन श्रीपंचायती निर्मल अखाड़ा भी अस्तित्व में आया। इन सभी अखाड़ों के लिए कुम्भ इस कारण भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इनके चुनाव व नई कार्यकारिणियों का इस दौरान गठन करने की परंपरा चली आ रही है।

- वेबदुनिया संदर्भ

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi