कुंभनगरी में तीन सौ साल बाद पड़े ऐसे दुर्लभ शाही स्नान का सात अखाड़ों ने जहाँ स्नान पुण्य का लाभ लिया वहीं देश-विदेश से आए लाखों श्रद्धालु भी सायंकाल तक गंगा स्नान में व्यस्त दिखे।
शुक्रवार को सदी के पहले एवं तीन शताब्दियों के बाद आए दुर्लभ संयोग के शाही स्नान में संन्यासियों के सात अखाड़ों के शाही स्नान को जाते हुए छह बैरागी अखाड़ों के भी संत-महंत उनके स्वागत में पुष्प वर्षा करते दिखाई दिए,जो कई वर्षों बाद दिखी एक संत एकता की मिसाल के रूप में माना गया है।
एक लाख अश्वमेघ यज्ञों के बराबर पुण्य का भागी बनाने वाले इस शाही स्नान के लिए सरकार ने व्यापक सुरक्षा बंदोबस्त किए थे। सुबह दस बजे से जब जूना, आह्वान व अग्नि अखाड़ों की शाही सवारी स्नान के लिए निकली तो उससे पूर्व प्रशासन ने पूरे शाही स्नान के मार्ग की सफाई और घाटों की सफाई कर व्यवस्थाएँ चौकस कर ली थीं। वैसे सुबह चार बजे से ही गंगा के तटों पर स्नान शुरू हो गया था। हरिद्वार हर की पैड़ी में आठ बजे तक स्थानीय निवासियों समेत आम श्रद्धालुओं ने छककर स्नान किया। आठ बजे के बाद हर की पैड़ी यानी ब्रह्मकुंड घाट खाली कराते हुए स्नान के लिए जिस मार्ग से संतों को आना था, को खाली करा दिया गया। सुबह सूर्यदेव के भी दर्शन देर से हुए, मानो वह स्वयं भी गंगास्नान में ही व्यस्त रह गए हों।
10 बजे जब जूना आह्वान और अग्नि अखाड़े का शाही स्नान हेतु प्रस्थान शुरू हुआ तो नजारा देखने लायक था। अखाड़ों के आचार्य महामंडलेश्वरों ने भी नागाओं के स्नान के बाद स्नान किया, गंगा मैया को फूल चढ़ाए, दूध चढ़ाकर नैवेद्य फल आदि का गंगाजी को भोग लगाया। महाशिवरात्रि के मौके पर पड़े सदी के इस पहले शाही स्नान में शाही स्नान को निकली संतों की टोली शिव बारात का ही नजारा पेश कर रही थी। यह कहा जाता है कि शाही स्नान के वक्त छत्तीस करोड़ देवता भी गंगा तट पर आ जाते हैं, यह नजारा हरिद्वार में दृष्टव्य था। तीन सौ वर्षों में महाशिवरात्रि के दिन पड़े कुंभकाल के शाही स्नान का पुण्य लाभ लेने पूरे देश से लोगों का दिनभर पहुँचना जारी था।
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रुद्राभिषेक का कार्यक्रम तमाम अखाड़ों पर चलता रहा। अखाड़ों के स्नान का क्रम देश के चार कुंभ स्थानों पर अलग-अलग तय रहता है। हरिद्वार में यह उसी क्रम में रहा है, जिसमें आज था। शाही स्नान की खासियत यह थी कि निरंजनी अखाड़े का जो विवाद पिछले इलाहाबाद कुंभ में हुआ था उसे यहाँ निपटा लिया गया। सभी अखाड़ों का आपसी संबंध इस कुंभ में खासा दिलचस्प रहा। इन सभी स्नान करने वाले अखाड़ों में अग्नि अखाड़ा ही ऐसा अखाड़ा है जिसमें कोई नागा साधु नहीं है। इस अखाड़े को ब्राह्मण अखाड़ा कहा जाता है।
अखाड़ों के पुरोहित आदि का कार्य यहीं अखाड़ा करता है। इसमें संत-महात्मा काफी विद्वान माने जाते हैं। हर अखाड़े में 52 मिढ्या होती है। मढ़ी का प्रमुख महंत कहलाते हैं। अखाड़ों के भगवा को पंच कहते हैं। पंच पंचदेवों के प्रतिनिधि कहलाते हैं।
शाही स्नान के पूर्व मार्गों का निरीक्षण करने अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष ज्ञानदास समेत तमाम अखाड़ों के प्रतिनिधि मौजूद रहे। उन्होंने कामना की कि शाही स्नान सभी श्रद्धालुओं के धन-धान्य एवं समृद्धि का कारक बने। प्रशासनिक व्यवस्थाओं के लिए 10 हजार पुलिसकर्मी स्नान सकुशल संपन्न कराने को लगाए गए थे। 40 कंपनी अर्धसैनिक बल भी इसके लिए यहाँ तैनात की गई है।
स्नान के दौरान सामाजिक उद्देश्यों के प्रति भी चेतना जगाने के प्रयास जारी रहे। महँगी एवं आकर्षक छत्री के नीचे चल रहे जूना के विदेशी महामंडलेश्वर सोहम बाबा ग्लोबल वार्मिंग पर तो अन्य महामंडलेश्वर अन्य कुरीतियों के प्रति जागरूकता फैलाते नजर आए। देशी-विदेशी शिष्य एवं शिष्याओं के साथ चल रहे अखाड़ों में भक्तिरस की वर्षा पूरे हरिद्वार में धार्मिक उत्सव का माहौल बना गई।