जीवन विभिन्न क्षेत्रों में शिखर पर पहुँचने वाली महिलाओं ने आध्यात्मिक क्षेत्र में भी शीर्ष स्थान पर जगह बना ली है। हरिद्वार में चल रहे महाकुंभ में मंगलवार को दो महिलाओं को महामण्डलेश्वर बनाया गया। इन्हें मिलाकर अब तक छः महिलाओं को आध्यात्मिक जगत की इस महाउपाधि से नवाजा जा चुका है।
महिला मण्डलेश्वर के पद प्राप्त करके महिलाओं ने यह सिद्ध कर दिया है कि अन्य क्षेत्रों की तरह धर्म कर्म में भी महिलाएँ पुरुषों से पीछे नहीं हैं। जूना अखाड़े से जुड़ी साध्वी अमिता गिरी तथा साध्वी दुर्गा गिरि को महामण्डलेश्वर की उपाधि प्रदान की गई। साध्वी अमिता गिरी नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री कृष्ण प्रसाद भट्टाराई की दत्तक पुत्री है। हरिद्वार के कनखल स्थित हरिहर आश्रम में स्वामी अवधेशानंद गिरिजी महाराज ने दोनों साध्वियों को यह उपाधि प्रदान की। परंपरानुसार पट्टाभिषेक समारोह के द्वारा अखाड़े साधुओं को महामण्डलेश्वर की उपाधि प्रदान करते हैं।
अखाड़े के आचार्य महामण्डलेश्वर चादर ओढ़ाकर महामण्डलेश्वर पद पर आसीन करते हैं। हालाँकि पुरुष प्रधान समाज में संतों में भी महिलाओं को बड़े पदों पर बैठाने को लेकर मतभेद रहे हैं। इससे पहले भारतीय मूल की एक विदेशी महिला विमला लानावत को शंकराचार्य पद के समकक्ष पर्वताचार्य बनाने को लेकर संत समाज ने भारी विरोध किया था।
जूना पीठाधीश्वर के स्वामी अवधेशानंद महाराज के अनुसार साधु चोला पहनने के बाद स्त्री पुरुष का भेद समाप्त हो जाता है और महिला एवं पुरुष केवल संत बन जाते हैं। भगवान ने भी सरस्वती, दुर्गा, लक्ष्मी की स्तुतियाँ की हैं। नारी शक्ति को सर्वत्र सम्मान मिला है और अब महामण्डलेश्वर पद पर सुशोभित होकर महिलाएँ भी धर्म के प्रचार-प्रसार में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकती हैं
पुरी के शंकराचार्य स्वामी अधोक्षजानंदजी महाराज कहते हैं कि शंकराचार्य एवं मण्डनमिश्र के बीच शास्त्रार्थ में एक महिला ही निर्णायक की भूमिका में सामने आई थी। महिलाएँ महामण्डलेश्वर तो बन सकती हैं यदि सक्षम व योग्य हों तो शंकराचार्य पद को भी सुशोभित कर सकती हैं।