प्रयाग तीर्थ, सप्तम नायक: शेष भगवान
प्रयाग के सप्तम नायक शेषावतार हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार शेष नाग के फन पर धरती टिकी हुई है। ये विष्णु के रूप में हैं। त्रेता युग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के भाई लक्ष्मण और द्वापर युग में श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम शेषावतार माने जाते हैं।लक्ष्मण ने भगवान राम के साथ तीर्थराज प्रयाग आकर संगम में स्नान किया था। बलराम ने तीर्थयात्रा के दौरान प्रयाग आकर यहां कई दिनों तक निवास किया था।इन पौराणिक संदर्भों से अलग एक सबसे महत्वपूर्ण मान्यता यह है कि शेष भगवान ने ही प्रयाग को तीर्थराज के रूप में माना है। पुराण कथा के अनुसार सृष्टि की रचना से पहले ब्रह्मा यज्ञ करना चाहते थे, लेकिन वे तय नहीं कर पा रहे थे कि यज्ञ कहां किया जाए।इस बारे में उन्होंने शेष भगवान से प्रश्न किया। शेष भगवान ने कहा कि यज्ञ तो तीर्थस्थान में ही फल देता है। तब ब्रह्मा ने कहा कि सर्वश्रेष्ठ तीर्थ कौन-सा है। तीनों लोक में अनेक तीर्थ हैं। इन तीर्थों को देवताओं, मनुष्यों और अन्य ने मान्यता दी है।तब शेष भगवान ने प्रजापति ब्रह्मा को तीर्थों के पुण्य का भार पता करने के लिए कहा। इसके लिए एक खास विधि अपनाई गई। इस विधि से तीर्थों के पुण्य का भार मालूम किया गया। पता चला कि तीर्थराज प्रयाग की पुण्य गरिमा सबसे ज्यादा है। शेष भगवान ने कहा कि प्रयाग ही तीर्थराज है।प्रयाग में शेष भगवान के दो मंदिर हैं। नागवासुकि मंदिर में शेष नाग विराजमान हैं। उनकी मूर्ति बहुत पुरानी है। दूसरा मंदिर सलोरी मोहल्ले में गंगा के पास है। बरसात के दिनों में जब गंगा बाढ़ पर होती है, तब श्रद्धालु नाव से इस मंदिर में जाते हैं। वैसे यह मंदिर सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। स्थानीय लोग इसे बलदाऊजी का मंदिर कहते हैं। प्रयाग महात्म्य में जिस शेष भगवान का संदर्भ दिया गया है, वह मंदिर यही है।