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महाकुंभ में सामंजस्य का दुर्लभ संयोग

- महेश पाण्डे

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हमें फॉलो करें हरिद्वार महाकुंभ
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संत संन्यासी अखाड़ों के पहले शाही स्नान निर्विघ्न समाप्त हो चुके हैं और अब हरिद्वार 15 मार्च को होने वाले छह बैरागी अखाड़ों के शाही स्नान की बाट जोह रहा है। पहले शाही स्नान में इस बार सामंजस्य का दुर्लभ संयोग देखने को मिला है।

इस महाकुंभ ने दो अखाड़ों के बीच 250 वर्षों से चली आ रही मतभेद की दीवार ढहा दी है। वर्ष 1760 में आयोजित महाकुंभ के दौरान संन्यासियों और बैरागियों के बीच हुए खूनी संघर्ष के बाद से बैरागियों ने पहले शाही स्नान में हिस्सा लेना छोड़ दिया था।

उल्लेखनीय है कि मनमुटाव की वजह से वृंदावन में यमुना नदी के तीर पर बैरागियों के लिए अलग से कुंभ का आयोजन होता है लेकिन इस बार हरिद्वार में अपने मन का मैल मिटाते हुए बैरागी अखाड़ों उदासी और निर्मल के प्रतिनिधि संतों ने दशनाम संन्यासियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर शाही स्नान में हिस्सा लिया। प्रतिनिधि संतों ने हर की पौड़ी में मिलकर स्नान किया और यह दर्शाने की कोशिश की कि सैकड़ों वर्षों से चले आ रहे उनके मतभेद समाप्त हो गए हैं।

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उल्लेखनीय है कि फरवरी माह में वृंदावन में होने वाले बैरागियों के अपने कुंभ में ही मुख्य रूप से इनकी उपस्थिति होती है और इनके प्रतिनिधि संन्यासी ही हरिद्वार में मौजूद रहते हैं। पिछले दिनों जब बैरागी संतों के उदासी और निर्मल अखाड़ों ने अपने छह अखाड़ों के लिए चैत्र पूर्णिमा पर होने वाले कुंभ स्नान को शाही दर्जा देने की माँग की तो संन्यासी अखाड़ों ने इसे सहजता से स्वीकार कर लिया और सभी तेरह अखाड़ों के इस स्नान में भाग लेने पर सहमति जता दी।

इस दरियादिली के बाद संन्यासियों के सबसे बड़े अखाड़े जूना के सचिव महंत हरिगिरी ने तीनों बैरागी अखाड़ों, दोनों उदासीन अखाड़ों और निर्मल अखाड़े को निमंत्रण दिया कि वे संन्यासियों के पहले स्नान में शामिल हों।

चूँकि इन अखाड़ों के ज्यादातर साधु वृंदावन में हैं तो उनके जो प्रतिनिधि हरिद्वार में थे उनमें से अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत ज्ञानदास सहित बैरागी, निर्मल एवं उदासीन अखाड़ों के प्रतिनिधियों ने यह निमंत्रण स्वीकार किया। फलस्वरूप पहले शाही स्नान में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के उपाध्यक्ष व ज्ञानदास निर्मल अखाड़े के साधु मित्र प्रकाश, नया अखाड़ा के जगतार मुनि, बैरागी आचार्य विष्णु देवानंद, बड़ा अखाड़ा उदासीन के राजेंद्र दास, भगतराम, संत महेंद्र सिंह आदि संन्यासी दशनाम संन्यासियों के साथ स्नान के लिए गंगा किनारे पहुंचे।

इस मौके पर संतों ने 'अखाड़ा एकता जिंदाबाद, अखाड़ा परिषद जिंदाबाद' के नारे भी लगाए। इस मायने में सदी का यह पहला कुंभ जो उत्तराखंड का भी पहला कुंभ है एक स्वर्णिम इतिहास रचने में सफल हुआ है।

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