मेले का मुख्य आकर्षण शाही स्नान होता है। शाही स्नान के लिए लाखों की संख्या में जब संत निकलते हैं तो यह दृश्य लोगों में सात्विक भावनाओं का संचार करता है। अठारह विभिन्न अखाड़ों का प्रतिनिधित्व वैष्णवी अखाड़े के हाथ होता है। वैष्णवी अखाड़े में महंत की पदवी पाने के लिए नवागत संन्यासी को वर्षों तक सेवा करनी पड़ती है।
वैष्णव अखाड़े की परंपरा के अनुसार जब भी नवागत साधु संन्यास ग्रहण करता है तो तीन साल की संतोषजनक सेवा टहल करने के बाद मुरेटिया की पदवी मिलती है। इसके बाद तीन साल में वह संन्यासी 'टहलू' पद पाता है। इसके बाद वह संत एवं महंतों की सेवा करता है। इस पर कई वर्ष एड़ियां रगड़ने के बाद टहलू को नागा पद मिलता है। नागा के ऊपर अखाड़े से संबंधित महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां होती हैं।
इन जिम्मेदारियों को सकुशल निभाने के बाद नागा अतीत की पदवी हासिल होती है। नागा अतीत के बाद पुजारी का पद हासिल होता है। पुजारी पद मिलने के बाद किसी मंदिर का काम सौंपे जाने की स्थिति में आगे चलकर ये महंत पद पाते हैं।
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कुंभ का पहला स्नान 14 जनवरी को मकर संक्रांति पर शुरू होगा। फिर 15 जनवरी को मौनी अमावस्या, 20 जनवरी को वसंत पंचमी, 30 जनवरी को माघ पूर्णिमा, 12 फरवरी को महाशिवरात्रि, 15 मार्च को सोमवती अमावस्या, 16 मार्च को नवसंवत्सर, 24 मार्च पर श्री रामनवमी, 30 मार्च को चैत्र पूर्णिमा, 14 अप्रैल को मेष संक्रांति और 28 अप्रैल को बैसाख अधिमास पूर्णिमा पर विशेष स्नान आयोजन के बाद यह मेला संपन्न होगा।