संन्यासी अखाड़ों का इतिहास
अपनी धर्मध्वजा ऊंची रखने और विधर्मियों से अपने धर्म, धर्मस्थल, धर्मग्रंथ, धर्म संस्कृति और धार्मिक परंपराओं की रक्षा के लिए किसी जमाने में संतों ने मिलकर एक सेना का गठन किया था। वहीं सेना आज अखाड़ों के रूप में विद्यमान है।अखाड़ा शब्द का अर्थ और उत्पत्ति जानने के लिए यहां क्लिक करें....कुंभ में संघर्ष का इतिहास : चार आश्रमों में से एक अंतिम संन्यास आश्रम के अनुयायी शैवों और वैष्णवों में शुरू से संघर्ष रहा है। शाही स्नान के वक्त अखाड़ों की आपसी तनातनी और साधु-संप्रदायों के टकराव खूनी संघर्ष में बदलते रहे हैं।वर्ष 1310 के महाकुंभ में महानिर्वाणी अखाड़े और रामानंद वैष्णवों के बीच हुए झगड़े ने खूनी संघर्ष का रूप ले लिया था। वर्ष 1398 के अर्धकुंभ में तो तैमूर लंग के आक्रमण से कई जानें गई थीं। वर्ष 1760 में शैव संन्यासियों व वैष्णव बैरागियों के बीच संघर्ष हुआ था। 1796 के कुंभ में भी शैव संन्यासी और निर्मल संप्रदाय आपस में भिड़ गए थे।अखाड़ा परिषद का गठन : 1954 के कुंभ में मची भगदड़ के बाद सभी अखाड़ों ने मिलकर अखाड़ा परिषद का गठन किया। विभिन्न धार्मिक समागमों और खासकर कुंभ मेलों के अवसर पर साधु संगतों के झगड़ों और खूनी टकराव की बढ़ती घटनाओं से बचने के लिए अखाड़ा परिषद की स्थापना की गई, जो सरकार से मान्यता प्राप्त है। इसमें कुल मिलाकर तेरह अखाड़ों को शामिल किया गया है। प्रत्येक कुंभ में शाही स्नान के दौरान इनका क्रम तय है।तेरह अखाड़ों के नाम जानने के लिए यहां क्लिक करें...हिंदू संत अखाड़ा सूचीअखाड़ों का इतिहास : कालांतर में शंकराचार्य के आविर्भाव काल सन् 788 से 820 के उत्तरार्द्ध में देश के चार कोनों में चार शंकर मठों और दसनामी संप्रदाय की स्थापना की। बाद में इन्हीं दसनामी संन्यासियों के अनेक अखाड़े प्रसिद्ध हुए, जिनमें सात पंचायती अखाड़े आज भी अपनी लोकतांत्रिक व्यवस्था के अंतर्गत समाज में कार्यरत हैं।दसनामियों के बारे में विस्तार से जानने के लिए यहां क्लिक करेंप्रसिद्ध सात शैव अखाड़ों का जानने के लिए आगे क्लिक करेंअखाड़ों की स्थापना क्रम : अखाड़ों की स्थापना के क्रम की बात करें तो अखाड़ों के शास्त्रों अनुसार सन् 660 में सर्वप्रथम आवाह्न अखाड़ा, सन् 760 में अटल अखाड़ा, सन् 862 में महानिर्वाणी अखाड़ा, सन् 969 में आनंद अखाड़ा, सन् 1017 में निरंजनी अखाड़ा और अंत में सन् 1259 में जूना अखाड़े की स्थापना का उल्लेख मिलता है।लेकिन, ये सारे उल्लेख शंकराचार्य के जन्म को 2054 में मानते हैं। जो उनका जन्मकाल 788 ईसवीं मानते हैं, उनके अनुसार अखाड़ों की स्थापना का क्रम चौदहवीं शताब्दी से प्रारंभ होता है। यही मान्यता उचित भी है।वैष्णव अखाड़े : बाद में भक्तिकाल में इन शैव दसनामी संन्यासियों की तरह रामभक्त वैष्णव साधुओं के भी संगठन बनें, जिन्हें उन्होंने अणी नाम दिया। अणी का अर्थ होता है सेना। यानी शैव साधुओं की ही तरह इन वैष्णव बैरागी साधुओं के भी धर्म रक्षा के लिए अखाड़े बनें।अभी बैरागियों के प्रमुख तीन अखाड़े हैं..वैष्णव अखाड़े को जानने के लिए यहां क्लिक करें...उदासीन अखाड़ा : साधुओं की अखाड़ा परंपरा के बाद में गुरु नानकदेव के सुपुत्र श्री श्रीचंद्र द्वारा स्थापित उदासीन संप्रदाय भी चला, जिसके आज दो अखाड़े कार्यरत हैं। एक श्रीपंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन और दूसरा श्री पंचायती अखाड़ा नया उदासीन। इसी तरह पिछली शताब्दी में सिख साधुओं के एक नए संप्रदाय निर्मल संप्रदाय और उसके अधीन श्री पंचायती निर्मल अखाड़ा का भी उदय हुआ।इस तरह कुल मिलाकर आज तेरह विभिन्न अखाड़े समाज और धर्म सेवा के क्षेत्र में कार्यरत हैं। इन सभी अखाड़ों का संचालन लोकतांत्रिक तरीके से कुंभ महापर्व के अवसरों पर चुनावों के माध्यम से चुने गए पंच और सचिवगण करते हैं।-
वेबदुनिया संदर्भ