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(सूर्य कर्क संक्रांति)
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साधुओं की बिदाई का क्रम शुरू

- महेश पाण्डे

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कुंभनगरी में बैरागियों के धूनों में सन्नाटा है तो संन्यासियों ने भी अपना बोरियाँ-बिस्तर बाँधना शुरू कर दिया है अब अगले कुंभ तक देश के विभिन्न कोनों में सनातन धर्म का प्रचार कर अगले 2013 में इलाहाबाद कुंभ का इंतजार इन संतों को रहेगा। हरिद्वार में अब साधुओं की बिदाई का क्रम शुरू होते ही धूनों में सन्नाटा पसरने लगा है।

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के महंत ज्ञानदास ने भी मुख्य कुंभ के तकरीबन सकुशल सम्पन्न होने से फुर्सत में दिन बिताया। वे सुरेश्वरी मंदिर में पूजा-अर्चना करने गए साथ ही कई मिलने वालों से भी उन्होंने मुलाकात की।

मुख्य शाही स्नान यानि मेष संक्राति पर भगदड़ का कारण बने वाहन और उसमें सवार महामण्डलेश्वर के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए जहाँ शहरवासियों का प्रशासन पर दबाव है वहीं इस महामंडलेश्वर पर कार्यवाही को लेकर जूना अखाड़ा नाराज बताया जा रहा है।

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जूना अखाड़ा का कहना है कि जिस महामंडलेश्वर पर कार्यवाही की तैयारी की जा रही है उसके खिलाफ पक्के सबूत उन्हें दिखाए जाएँ ताकि वे संतुष्ट हो सके। इस मामले के तूल पकड़ने के आसार लग रहे हैं। चूँकि जूना अखाड़ा तेरहों अखाड़ों में सबसे बड़ा अखाड़ा है इसका सरकार पर दबाव रहता है। प्रशासन इसके खिलाफ कार्यवाही करने में संकोच में दिखाई दे रहा है।

भगदड़ की जाँच के लिए बनी समिति ने जब इस महामंडलेश्वर से पूछताछ करनी चाही तो उसने स्वंय को निर्दोष बताकर जूना के अन्य महामंडलेश्वरों की शरण ले ली। हालाँकि कुंभ क्षेत्र के बस अड्डों रेलवे स्टेशनों में वापस लौटने की प्रतीक्षारत कुंभयात्रियों की अब भी बेतहाशा भीड़ है लेकिन शहर को कुछ राहत जरूर दिख रही है।

पुरूषोत्तम मास में धर्म-कर्म के कार्यों के लिए तीर्थयात्रियों का आना जारी हैं। कई श्रद्घालु जो शाही स्नान पर मेष संक्राति के स्नान में गंगा तट पर आए थे अब ऋषिकेश व अन्य धार्मिक स्थलों की यात्रा पर भी निकले है। इस कारण इन जगहों पर भी अथाह भीड़ जमा होने से कई मंदिरों को बंद करना पड़ा है। ऋषिकेश के बहुमंजिला मंदिर एवं नीलकंठ महादेव के मंदिरों में भी श्रद्घालुओं की भारी-भरकम भीड़ पहुंच रही है।

हरिद्वार के अखाड़ों में गत दिवस फिर एक भीषण अग्निकांड होते होते बचा। जूना अखाड़े के मायादेवी मंदिर की रसोई घर में सिलेण्डर लीक होने से लगी इस आग पर शीघ्र काबू पा लिया गया। अन्यथा इससे भारी नुकसान हो सकता था। इससे साधु-संतों का वहाँ भारी जमावड़ा लग गया, समय रहते इस पर काबू पा लेने से अनहोनी बच गई।

संतों के शाही स्नानों के खत्म होते ही संतों के शिविरों में सुनसानी से कथाएँ भागवत एवं रामायण पाठ की जगह अब सन्नाटे ने ले ली है। लेकिन श्रद्घालुओं का स्नान पर्व अभी 28 अप्रैल को आने को है।

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