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भगवान वाल्मीकि का प्रकटोत्सव

- शरद पूर्णिमा

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आश्विन मास की शरद पूर्णिमा को आदि कवि भगवान वाल्मीकि का जन्म दिवस मनाया जाता है। भगवान वाल्मीकि ने संस्कृत भाषा में रामायण की रचना की जो संसार का पहला लोककाव्य है। एक दिन अनायास ही विहार करते हुए क्रौंच पक्षी के जोड़े में से एक पक्षी को व्याध ने मार डाला। पक्षी की चीत्कार सुन, वहीं पर गिरता देख, उन्हें इतना दुख हुआ कि उनके मुख से एक छंद निकल पड़ा, फिर उसी छंद में उन्होंने नारद से सुना हुआ श्रीराम का उज्ज्वल चरित्र निबद्ध किया।

श्रीराम ने अपनी पत्नी सीता का परित्याग किया तो देवर लक्ष्मण ने आम के पास गर्भवती सीता जी को छोड़ दिया था। ऋषि वाल्मीकि ने सीता जी को अपने आश्रम में रखा, जहाँ उन्होंने लव और कुश को जन्म दिया। उन्होंने दोनों बच्चों का लालन-पालन किया और महारानी सीता की जीवन लीला सुनाई। बच्चों के मधुर स्वर द्वारा श्लोकों में संगीतमय राम-कथा सबके मन को मोहित करती थी। एकतारे पर दोनों भाई वाल्मीकि के निर्देशानुसार गायन करते थे।

घोर तपस्या एवं भगवान के ध्यान में इतना मग्न हो गए कि उनके शरीर पर चीटियों ने अपना घर बना लिया। उनके संपूर्ण शरीर पर बॉबी बन गई इसलिए उन्हें महातपस्वी भगवान वाल्मीकि के नाम से पुकारा जाने लगा। लोग उन्हें आज तक पूजते हैं। जन्मदिन पर शोभा यात्रा निकालते हैं। मंदिरों में पूजा पाठ कीर्तन आदि करते हैं।

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एक दिन लव-कुश दोनों मित्रों के साथ बाहर खेल रहे थे। इतने में एक श्याम वर्ण का घोड़ा आया। उसके मस्तक पर स्वर्ण पट्टिका थी जिस पर लिखा था यह अयोध्या के राजा श्रीराम का घोड़ा है जो श्रीराम को राजा न माने, वह घोड़ा पकड़ ले और पीछे आ रही सेना से युद्ध करे।

दोनों बालकों ने घोड़े की लगाम पकड़ ली। सेना के साथ विकट युद्ध करने लगे। सेनापति शत्रुघ्न वहाँ आए और बच्चों की वीरता देख चकित हो गए। तभी सीता माता कुटिया से बाहर आईं। इस प्रकार अयोध्या की सारी सेनाओं बंधन में आने के बाद स्वयं राम अश्वमेघ का घोड़ा छुड़ाने के लिए वहाँ पहुँचते हैं और भीषण युद्ध होता है। इसी बीच सीता जी वहाँ पहुँचती हैं और इस रहस्य से पर्दा उठता है कि लव-कुश श्रीराम और सीता के पुत्र हैं।

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वाल्मीकि रामायण में तत्कालीन भारतीय समाज का संपूर्ण चित्र प्रस्तुत है। भारत का आचार विचार सदैव से आदर्श और मर्यादित रहा है। धर्म से अनुशासित होने के कारण सारे संस्कार तथा समय संपन्न होते थे। वेद का अध्ययन और अध्यापन सर्वव्यापी था। रामायण महाकाव्य को तत्कालीन समाज ने हृदय से स्वागत किया। रामायण गान उनके लिए नया, चमत्कारी और सुख देने वाला अनुभव सिद्ध हुआ।

हिंदू संस्कृति के सभी क्षेत्रों में रामायण का विशेष प्रभाव पड़ा। वाल्मीकि जी के चरित्र नायक श्रीराम की पूजा हिंदू धर्म का अमिट अंग है। भगवान वाल्मीकि जी से प्रभावित होकर ही रामानुज, रामानन्द, कबीर, तुलसीदास ने श्रीराम को एक आदर्श राजा और ईश्वरीय अवतार के रूप में प्रस्तुत किया। यह देश-विदेश में भारतीय संस्कृति का आधार स्तंभ बन गए। भगवान वाल्मीकि द्वारा रचित राम कथा महाकाव्य एवं उसकी शिक्षा समाज को सदैव प्रेरित करती रहेगी।

नारी सम्मान, शक्ति, शास्त्र, शासन व्यवस्था, राष्ट्र की सुरक्षा, अन्याय के विरुद्ध खड़ा होना एवं साहित्य की साधना इत्यादि अनेक प्रकार की प्रेरणा हमें भगवाना वाल्मीकि के रामायण से प्राप्त होती है। (दिल्ली नईदुनिया)

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