Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia

आज के शुभ मुहूर्त

(दशमी तिथि)
  • तिथि- मार्गशीर्ष कृष्ण दशमी
  • शुभ समय- 6:00 से 7:30 तक, 9:00 से 10:30 तक, 3:31 से 6:41 तक
  • व्रत-भ. महावीर दीक्षा कल्याणक दि.
  • राहुकाल-प्रात: 7:30 से 9:00 बजे तक
webdunia
Advertiesment

महान संत शिरोमणि रविदास की जयंती

हमें फॉलो करें महान संत शिरोमणि रविदास की जयंती
संत कुलभूषण कवि संत शिरोमणि रविदास (रैदास) का जन्म काशी में हुआ था। उनकी माता का नाम कर्मा देवी तथा पिता का नाम संतोख दास था। चर्मकार कुल से होने के कारण जूते बनाने का अपना पैतृक व्यवसाय उन्होंने ह्रदय से अपनाया था। वे पूरी लगन तथा परिश्रम से अपना कार्य करते थे। 
 
संत रविदास बचपन से ही परोपकारी और दयालु स्वभाव के थे। दूसरों की सहायता करना उन्हें बहुत अच्छा लगता था। खास कर साधु-संतों की सेवा और प्रभु स्मरण में वे विशेष ध्यान लगाते थे। 
 
एक दिन संत रैदास (‍रविदास) अपनी कुटिया में बैठे प्रभु का स्मरण करते हुए कार्य कर रहे थे, तभी एक ब्राह्मण रैदासजी की कुटिया पर आया और उन्हें सादर वंदन करके बोला कि मैं गंगाजी स्नान करने जा रहा था, सो रास्ते में आपके दर्शन करने चला आया।
 
रैदासजी ने कहा कि आप गंगा स्नान करने जा रहे हैं, यह एक मुद्रा है, इसे मेरी तरफ से गंगा मैया को दे देना। ब्राह्मण जब गंगाजी पहुंचा और स्नान करके जैसे रुपया गंगा में डालने को उद्यत हुआ तो गंगा नदी में से गंगा मैया ने जल में से अपना हाथ निकालकर वह रुपया ब्राह्मण से ले लिया तथा उसके बदले ब्राह्मण को एक सोने का कंगन दे दिया।
 
ब्राह्मण जब गंगा मैया का दिया कंगन लेकर लौट रहा था तो वह नगर के राजा से मिलने चला गया। ब्राह्मण को विचार आया कि यदि यह कंगन राजा को दे दिया जाए तो राजा बहुत प्रसन्न होगा। उसने वह कंगन राजा को भेंट कर दिया। राजा ने बहुत-सी मुद्राएं देकर उसकी झोली भर दी।
 
ब्राह्मण अपने घर चला गया। इधर राजा ने वह कंगन अपनी महारानी के हाथ में बहुत प्रेम से पहनाया तो महारानी बहुत खुश हुई और राजा से बोली कि कंगन तो बहुत सुंदर है, परंतु यह क्या एक ही कंगन, क्या आप बिल्कुल ऐसा ही एक और कंगन नहीं मंगा सकते हैं।
 
राजा ने कहा- प्रिये ऐसा ही एक और कंगन मैं तुम्हें शीघ्र मंगवा दूंगा। राजा से उसी ब्राह्मण को खबर भिजवाई कि जैसा कंगन मुझे भेंट किया था वैसा ही एक और कंगन मुझे तीन दिन में लाकर दो वरना राजा के दंड का पात्र बनना पड़ेगा।
 
खबर सुनते ही ब्राह्मण के होश उड़ गए। वह पछताने लगा कि मैं व्यर्थ ही राजा के पास गया, दूसरा कंगन कहां से लाऊं? 
 
इसी ऊहापोह में डूबते-उतरते वह रैदासजी की कुटिया पर पहुंचा और उन्हें पूरा वृत्तांत बताया कि गंगाजी ने आपकी दी हुई मुद्रा स्वीकार करके मुझे एक सोने का कंगन दिया था, वह मैंने राजा को भेंट कर दिया। अब राजा ने मुझसे वैसा ही कंगन मांगा है, यदि मैंने तीन दिन में दूसरा कंगन नहीं दिया तो राजा मुझे कठोर दंड देगा।
 
रैदासजी बोले कि तुमने मुझे बताए बगैर राजा को कंगन भेंट कर दिया। इसका पछतावा मत करो। यदि कंगन तुम भी रख लेते तो मैं नाराज नहीं होता, न ही मैं अब तुमसे नाराज हूं।
 
रही दूसरे कंगन की बात तो मैं गंगा मैया से प्रार्थना करता हूं कि इस ब्राह्मण का मान-सम्मान तुम्हारे हाथ है। इसकी लाज रख देना। ऐसा कहने के उपरांत रैदासजी ने अपनी वह कठौती उठाई जिसमें वे चर्म गलाते थे। उसमें जल भरा हुआ था।
 
उन्होंने गंगा मैया का आह्वान कर अपनी कठौती से जल छिड़का तब गंगा मैया प्रकट हुई और रैदास जी के आग्रह पर उन्होंने एक और कड़ा ब्राह्मण को दे दिया।
 
ब्राह्मण खुश होकर राजा को वह कंगन भेंट करने चला गया और रैदासजी ने अपने बड़प्पन का जरा भी अहसास ब्राह्मण को नहीं होने दिया। ऐसे थे महान संत रविदास। 
 
एक अन्य प्रसंग के अनुसार एक बार एक पर्व के अवसर पर उनके पड़ोस के लोग गंगा जी में स्नान के लिए जा रहे थे। 
 
रविदास के शिष्यों में से एक ने उनसे भी गंगा स्नान के लिए चलने का आग्रह किया। उन्होंने उत्तर दिया- गंगा स्नान के लिए मैं अवश्य चलता किंतु एक व्यक्ति को जूते बनाकर आज ही देने का वचन मैंने दे रखा है। यदि मैं उसे आज जूते नहीं दे सका तो मेरा वचन भंग होगा। ऐसे में गंगा स्नान के लिए जाने पर मन यहां लगा रहेगा तो पुण्य कैसे प्राप्त होगा? 
 
मन जो काम करने के लिए अंत:करण से तैयार हो, वही काम करना उचित है। अगर मन सही है तो इसे कठौते के जल में ही गंगा स्नान का पुण्य प्राप्त हो सकता है। माना जाता है कि इस प्रकार के उनके व्यवहार के बाद से ही यह कहावत प्रचलित हो गई कि- 'मन चंगा तो कठौती में गंगा।' 

संत रविदास की रचना :- 
 
अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी।
 
प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी, 
जाकी अंग-अंग बास समानी।
 
प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा, 
जैसे चितवत चंद चकोरा।
 
प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती, 
जाकी जोति बरै दिन राती।
 
प्रभु जी, तुम मोती हम धागा, 
जैसे सोनहिं मिलत सुहागा।
 
प्रभु जी, तुम तुम स्वामी हम दासा, 
ऐसी भक्ति करै रैदासा।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

जीवन में ऊंचाइयों को छुने के लिए कारगर साबित होंगे ये चमत्कारिक उपाय...