Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
  • तिथि- कार्तिक शुक्ल सप्तमी
  • शुभ समय- 7:30 से 10:45, 12:20 से 2:00 तक
  • व्रत/मुहूर्त-छठ पारणा, सहस्रार्जुन जयंती
  • राहुकाल-प्रात: 10:30 से 12:00 बजे तक
webdunia
Advertiesment

हरिनाम संकीर्तन के प्रचारक चैतन्य महाप्रभु की जयंती

हमें फॉलो करें हरिनाम संकीर्तन के प्रचारक चैतन्य महाप्रभु की जयंती
Chaitanya Mahaprabhu
 
चैतन्य महाप्रभु ऐसे संत हुए हैं जिन्होंने भक्ति मार्ग का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत किया। चैतन्य देव का आविर्भाव पूर्वबंग के अपूर्व धाम नवद्वीप में फाल्गुन पूर्णिमा, होली के दिन हुआ था। उनके पिता का नाम पंडित जगन्नाथ मिश्र और माता का नाम शचीदेवी था।
 
24 (चौबीस) वर्ष की अवस्था में लोककल्याण की भावना से संन्यास धारण किया, जब भारत वर्ष में चारों ओर विदेशी शासकों के भय से जनता स्वधर्म का परित्याग कर रही थी। तब चैतन्य महाप्रभु ने यात्राओं में हरिनाम के माध्यम से हरिनाम संकीर्तन का प्रचार कर प्रेमस्वरूपा भक्ति में बहुत बड़ी क्रांति फैला दी। 
 
संन्यास ग्रहण के पश्चात चैतन्य महाप्रभु ने दक्षिण भारत की ओर प्रस्थान किया। उस समय दक्षिण में मायावादियों के प्रचार-प्रसार के कारण वैष्णव धर्म प्रायः संकीर्तन का प्रचार न करते तो यह भारत वर्ष वैष्णव धर्म विहीन हो जाता। हरिनाम का स्थान-स्थान पर प्रचार कर चैतन्य देव श्रीरंगम्‌ पहुंचे और वहां गोदानारायण की अद्भुत् रूपमाधुरी देख भावावेश में नृत्य करने लगे। चैतन्य का भाव-विभावित स्वरूप देख मंदिर के प्रधान अर्चक श्रीवेंकट भट्ट चमत्कृत हो उठे और भगवान की प्रसादी माला उनके गले में डाल दी तथा उन्हें बताया कि वर्षाकालीन यह चातुर्मास कष्ट युक्त, जल प्लावन एवं हिंसक जीव-जंतुओं के बाहूल्य के कारण यात्रा में निषिद्ध है, अतः उनके चार मास तक अपने घर में ही निवास की प्रार्थना की। 
 
श्रीवेंकट भट्ट के अनुरोध पर चैतन्य महाप्रभु के चार मास उनके आवास पर व्यतीत हुए। उन्होंने पुत्र श्रीगोपाल भट्ट को दीक्षित कर वैष्णव धर्म की शिक्षा के साथ शास्त्रीय प्रमाणोंसहित एक स्मृति ग्रंथ की रचना का आदेश दिया।

भारतीय उपासना पद्धति में व्रत उत्सवों का बहुत महत्व है। शैव, वैष्णव सहित सभी उपासक इनको बहुत पवित्रता से आचरण में उतारते हैं। जिन-जिन आचार्यों ने उपासना पद्धतियों में जो कुछ भी विशेष उपलब्धियां प्राप्त की वह जन मानस में स्वीकार होती चली गईं। 

कुछ समय पश्चात श्रीगोपाल भट्ट वृंदावन आए एवं वहां निवास कर उन्होंने पंचरात्र, पुराण और आगम निगमों के प्रमाणसहित 251 ग्रंथों का उदाहरण देते हुए हरिभक्ति विलास स्मृति की रचना की। इस ग्रंथ में उन्होंने एकादशी तत्व विषय पर विशेष विवेचना की। 
 
इस प्रसंग में आचार्य गौर कृष्ण दर्शन तीर्थ कहते हैं चातुः साम्प्रदायिक वैष्णवों के लिए आवश्यक रूप में एकादशी व्रत का महत्वपूर्ण स्थान है। एकादशी व्रत करने से जीवन के संपूर्ण पाप विनष्ट हो जाते हैं। इस व्रत को सहस्रों यज्ञों के समान माना गया है। ब्रह्मचारी, गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यासी तथा विधवा स्त्रियां भी एकादशी व्रत के अधिकारी हैं। एकादशी व्रत त्याग कर जो अन्न सेवन करता है, उसकी निष्कृति नहीं होती। जो व्रती को भोजन के लिए कहता है, वह भी पाप का भागी होता है। 

- आचार्य गोविन्द बल्लभ जोशी 

ALSO READ: 18 फरवरी : स्वामी रामकृष्ण परमहंस की जयंती

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

18 फरवरी 2021 : आज इन राशियों के लिए व्यापार रहेगा लाभदायक, पढ़ें 12 राशियां