हिन्दू धर्म में विश्वकर्मा को निर्माण एवं सृजन का देवता माना जाता है। वे वास्तुदेव के पुत्र तथा माता अंगिरसी के पुत्र थे। मान्यता है कि सोने की लंका का निर्माण भी उन्होंने ही किया। पौराणिक काल में विशाल भवनों का निर्माण भगवान विश्वकर्मा करते थे। उन्होंने ही इन्द्रपुरी, यमपुरी, वरुणपुरी, पांडवपुरी, कुबेरपुरी, शिवमंडलपुरी तथा सुदामापुरी आदि का निर्माण किया था। सोने की लंका के अलावा कई ऐसे भवनों का निर्माण उन्होंने किया था, जो उस समय स्थापत्य और सुंदरता में अद्वितीय होने के साथ-साथ वास्तु के हिसाब भी महत्वपूर्ण थे।
ये मंदिर देवी-देवताओं, राजा-महाराजाओं द्वारा बनवाए जाते थे। यह भी कहा जाता है कि भगवान विश्वकर्मा को इतना अनुभव था कि वे अपनी कार्यशक्ति से पानी में चलने वाला खड़ाऊ भी बना सकते थे।
वैसे तो भगवान विश्वकर्मा का वर्षभर में कई बार पूजा महोत्सव मनाया जाता है, पर उनकी जन्म तिथि माघ शुक्ल त्रयोदशी को मानी जाती है। भगवान विश्वकर्मा की पूजा जनकल्याणकारी है अतएव प्रत्येक व्यक्ति को तकनीकी और विज्ञान के जनक भगवान विश्वकर्मा की पूजा-अर्चना अवश्य करनी चाहिए।
सोने की लंका के निर्माण के संबंध में एक कहानी है कि त्रिलोक विजेता बनने के बाद रावण के मन में अपनी प्रतिष्ठा के अनुकूल ऐसे नगर के निर्माण का विचार आया जिसके आगे देवताओं की अलकापुरी भी फीकी नजर आए। उसने शिव की आराधना कर उनसे सोने की लंका बनाने में देवशिल्पी विश्वकर्मा का सहयोग मांगा।
शिव के कहने पर विश्वकर्मा ने सोने की लंका का ऐसा प्रारूप बनाया जिसे देखते ही रावण की बांछें खिल गईं। उसी के आधार पर बनी सोने की लंका की सुंदरता देखते ही बनती थी। रावण लंका में आने वाले हर महत्वपूर्ण अतिथि को वहां के दर्शनीय स्थलों को बड़े गर्व के साथ दिखाता।
ऐसे ही एक बार वह बड़े-बड़े ऋषि-मुनियों को लंका का भ्रमण करा रहा था। वे भी लंका का सौंदर्य देखकर अचंभित थे। इस बीच रास्ते में मिलने वाले लंकावासी रावण को देखकर भय से नतमस्तक हो जाते, लेकिन अतिथियों का कोई अभिवादन नहीं करता। ऐसा ही व्यवहार रावण के मंत्रियों, सैनिकों और कर्मचारियों ने भी किया।
भ्रमण समाप्ति पर रावण ने ऋषियों से पूछा- 'आपको हमारी लंका कैसी लगी?'
एक महर्षि बोले- 'लंका तो अद्भुत है लंकेश लेकिन यह शीघ्र ही नष्ट हो जाएगी, क्योंकि आपने लंका के सौंदर्य और सुरक्षा के लिए तो बहुत कुछ किया है, लेकिन इसके स्थायित्व के लिए कुछ भी नहीं। जहां के निवासियों के मुख पर प्रसन्नता की जगह भय के भाव हों और जिनमें सदाचार का अभाव हो, वह नगर समय के साथ नष्ट हो जाता है।'
भारतीय परंपरा में निर्माण कार्य से जुड़े लोगों को 'विश्वकर्मा की संतान' कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार उन्हीं के प्रारूप पर स्वर्ग, देवताओं के अस्त्र-शस्त्र, पुष्पक विमान, द्वारिका, इन्द्रप्रस्थ आदि का निर्माण हुआ। इस प्रकार वे बहुमुखी कलाकार और शिल्पकार हैं।