Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia

आज के शुभ मुहूर्त

(चतुर्थी तिथि)
  • तिथि- वैशाख कृष्ण चतुर्थी
  • शुभ समय-9:11 से 12:21, 1:56 से 3:32
  • व्रत/मुहूर्त-शुक्रास्त पूर्वे, गुरु तेग बहादुर जयंती
  • राहुकाल- सायं 4:30 से 6:00 बजे तक
webdunia
Advertiesment

मीराबाई जयंती : जानिए श्रीकृष्ण की उपासिका मीरा के जीवन की 10 बातें

हमें फॉलो करें मीराबाई जयंती : जानिए श्रीकृष्ण की उपासिका मीरा के जीवन की 10 बातें
, बुधवार, 20 अक्टूबर 2021 (12:24 IST)
Meerabai Jayanti: प्रत्येक वर्ष अश्विन मास की शरद पूर्णिमा के दिन भगवान श्री कृष्ण की भक्त मीराबाई की जयंती का पर्व मनाया जाता है। इस बार मीराबाई जयंती 20 अक्टूबर 2021 दिन बुधवार यानि आज मनाई जा रही है।
 
 
1. कहते हैं कि माराबाई अपने पिछले जन्म में कृष्ण की सखी थीं जो मोक्ष प्राप्त करने से चूक गई थीं। 
 
2. मीराबाई का जन्म जोधपुर में हुआ था। वे राठौड़ रतन सिंह की इकलौती पुत्री थीं। मीराबाई बचपन से ही कृष्ण भक्ति में डूबी हुई थी।
 
3. एक बार बचपन में मीराबाई के पड़ोस में बारात आई तो सभी सखी सहेलियां छत पर खड़ी होकर बारात देखने लगी। जिज्ञासावश मीरा ने अपनी मां से पूछ लिया कि मेरा दुल्हा कौन है तो माता ने हंसते हुए श्रीकृष्‍ण की मूर्ति की ओर इशारा करते हुए कहा कि ये है। तभी से मीराबाई के बालमन में यह बात बैठ गई और उन्होंने श्रीकृष्ण को अपना पति मान लिया।
 
4. विवाह की उम्र होने पर मीराबाई की इच्छा के विरुद्ध उनका विवाह मेवाड़ के राजकुमार भोजराज से कर दिया गया। विवाह के बाद भी मीराबाई नित्य कृष्‍ण भक्ति करती और मंदिरों में जाकर नृत्य भी करती थीं। यह बात उनके ससुराल वालों को पसंद नहीं थी।
 
5. ऐसा कहा जाता है कि मीराबाई ने तुलसीदास जी को एक पत्र लिखा था कि उनके परिवार के सदस्य उन्हें कृष्ण की भक्ति नहीं करने देते हैं। तब गुरु तुलसीदास के कहने पर मीराबाई ने श्रीकृष्ण भक्ति के भजन लिखने लगी।
 
6. मीरा के इस आचरण से उसके ससुराल वाले बहुत नाराज थे। एक राजवंश की कुल-वधु साधु-संतों के साथ घूमे और मंदिरों में भजन-कीर्तन करे तथा नृत्य करे यह बात उन्हें अच्छी न लगती थी। परिवार के लोग मीरा से छुटकारा पाना चाहते थे। मीरा को समाप्त करने के लिए मीरा के देवर राणा विक्रमाजीत ने विष का भरा प्याला मीरा को पीने के लिए भेजा। मीरा से यह बताया गया कि इस प्याले में सुगंधित मधुर रस है।
 
मीरा ने प्याले को उठाया और एक सांस में सारा विष पी गई, उसके चेहरे पर विष का तनिक भी प्रभाव न दिखाई दिया। वह विष मीरा के लिए अमृत हो गया। यह सूचना जब राणा को दी गई तो उन्हें बड़ी निराशा हुई।
 
7. इसके बाद देवर राणा विक्रमाजीत ने एक नया उपाय सोचा। उन्होंने सपेरे से एक काला जहरीला सर्प मंगवाया। उस जहरीले नाग को राणा विक्रमाजीत ने अपनी दीवान महाजन ‍वीजावर्गी द्वारा एक सजे हुए पिटारे में रखवाकर मीरा के पास भेजा। दीवान वीजावर्गी पिटारा लेकर मीरा के पास पहुंचा। पिटारा को मीरा के समक्ष रखते हुए उसने कहा- यह पिटारा भेंटस्वरूप राणा ने आपके पास भेजा है। मीरा सब कुछ समझ गई थीं। उन्होंने मुस्कुराते हुए उस पिटारे को खोला। उन्होंने क्या देखा कि पिटारे के भीतर एक सुगंधित तुलसी की माला रखी है। उन्होंने माला को उठाकर माथे से लगाया और चूमकर अपने गले में डाल लिया। राणा का यह दांव भी खाली गया। माला पहनकर मीरा गिरधर गोपाल के मंदिर में गईं और कीर्तन करने लगीं।
 
8. चित्तौड़ के महाराजा संग्राम सिंह के पुत्र भोजराज की मृत्यु के पश्चात मीराबाई कृष्‍णभक्ति में पूरी तरह से लीन हो गई और एक दिन मीराभाई कृष्णभक्ति के लिए 1524 ईस्वी में वृन्दावन आ गई थीं और वे वहीं पर कृष्ण भक्ति में लगी रही। 
 
9. वृंदावन में 1539 तक 15 वर्ष रहने के पश्चात अपने आराध्य की खोज में द्वारिका चली गई थीं और वहीं अंत समय तक रही थीं।  मान्यताओं के अनुसार, वर्ष 1547 में उनका निधन हो गया था।
 
10. वृन्दावन में ठा. शाहबिहारी मंदिर के निकट एक पतलीसी गली में राजस्थानी स्थापत्य में बने ठा. सालिगरामजी के मंदिर को मीराबाई का मंदिर माना जाता है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

आश्विन पूर्णिमा आज भी है, जानिए खास बातें