Ramakrishna Paramahamsa Birth Anniversary भारत के महान योगी संत रामकृष्ण परमहंस का जन्म फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया (phalgun Shukla Dwitiya) को हुआ था। इस वर्ष यह तिथि शुक्रवार, 4 मार्च 2022 को है। इस दिन रामकृष्ण परमहंस की 186वीं जयंती मनाई जाएगी। जन्म तारीख के अनुसार वे 18 फरवरी 1836 को बंगाल के एक प्रांत कामारपुकुर गांव में जन्मे थे।
उनका बचपन का नाम गदाधर चट्टोपाध्याय था। पिता का नाम खुदीराम तथा माता का नाम चंद्रमणि देवी था। उन्हें भारत एक महान संत और विचारक कहा जाता है। वे मानवता के पुजारी थे। हिन्दू, इस्लाम और ईसाई आदि सभी धर्मों पर उसकी श्रद्धा एक समान थी, ऐसा इसलिए क्योंकि उन्होंने बारी-बारी सबकी साधना करके एक ही परम-सत्य का साक्षात्कार किया था। उन्होंने अपने जीवनकाल में सभी धर्मों की एकता पर जोर दिया।
अपने बचपन से ही उन्हें विश्वास था कि भगवान के दर्शन हो सकते हैं, अतः भगवान प्राप्ति के लिए उन्होंने कठोर साधना और भक्ति की तथा सादगीपूर्ण जीवन बिताया। अपने जीवन में उन्होंने स्कूल के कभी दर्शन नहीं किए थे। उन्हें न तो अंग्रेजी आती थी, न वे संस्कृत के जानकार थे। वे तो सिर्फ मां काली के भक्त थे। उनकी सारी पूंजी महाकाली का नाम-स्मरण मात्र था। माना जाता है कि उनके माता-पिता को उनके जन्म से पहले ही अलौकिक घटनाओं का अनुभव हुआ था।
उनके पिता को एक रात दृष्टांत हुआ, जिसमें उन्होंने देखा कि भगवान गदाधर ने स्वप्न में उनसे कहा था कि वे विष्णु अवतार के रूप में उनके पुत्र के रूप में जन्म लेंगे तथा माता चंद्रमणि को भी ऐसे ही एक दृष्टांत का अनुभव हुआ था, जिसमें उन्होंने शिव मंदिर में अपने गर्भ में एक रोशनी को प्रवेश करते हुए देखा था। रामकृष्ण परमहंस सिर से पांव तक आत्मा की ज्योति से परिपूर्ण थे। उन्हें आनंद, पवित्रता तथा पुण्य की प्रभा घेरे रहती थीं। वे दिन-रात चिंतन में लगे रहते थे।
रामकृष्ण परमहंस के सामने सांसारिक सुख, धन, समृद्धि, मूल्यवान वस्तुओं का भी कोई मूल्य नहीं था। जब उनके वचनामृत की धारा फूट पड़ती थी, तब बड़े-बड़े तार्किक भी अपने आप में खोकर मूक हो जाते थे। उनकी वचनामृत की शैली भारत के प्राचीन ऋषि, मुनि, महावीर, बुद्ध जैसे महान संतों के उपदेश के पद्धति जैसी ही थी। वे अपने उपदेशों में तर्कों का सहारा कम लेते थे, जो कुछ समझाना होता वे उसे उपमा और दृष्टांतों से समझाते थे।
रामकृष्ण परमहंस को सन् 1885 के मध्य में गले की बीमारी के चिह्न नजर आए और शीघ्र ही उस बीमारी ने उन्हें गंभीर रूप जकड़ लिया, जिससे वे ठीक न हो सके और 16 अगस्त सन् 1886 (Ramakrishna Paramahamsa Death) को उन्होंने महाप्रस्थान किया। उनके प्रिय शिेष्य स्वामी विवेकानंद ने अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस द्वारा दी गई शिक्षा से पूरे विश्व में भारत के विश्व गुरु होने का प्रमाण देकर भारत का मान बढ़ाया। रामकृष्ण परमहंस को 19वीं सदी के प्रसिद्ध संत माना जाता है। सनातन परंपरा की साक्षात प्रतिमूर्ति कहे जाने वाले एक महात्मा थे रामकृष्ण परमहंस।
कब मनेगी रामकृष्ण जयंती- Ramakrishna Paramahamsa Jayanti Time
इस बार द्वितीया तिथि का प्रारंभ 3 मार्च 2022 को रात 9.36 मिनट से होकर 4 मार्च 2022 को रात 8.45 मिनट तक रहेगी। अत: रामकृष्ण जी की जयंती शुक्रवार, 4 मार्च 2022 को मनाई जाएगी।