भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की दूज को राजस्थान के महान संतों में से एक बाबा रामदेवरा जिन्हें रामापीर भी कहते हैं उनकी जयंती मनाई जाती है। इस बार यह जयंती 8 सितंबर को रहेगी। जनश्रुति के आधार पर आओ जानते हैं उनके जीवन से जुड़ा एक रोचक किस्सा।
बाबा रामदेव (1352-1385) : 'पीरों के पीर रामापीर, बाबाओं के बाबा रामदेव बाबा' को सभी भक्त बाबारी कहते हैं। जहां भारत ने परमाणु विस्फोट किया था, वे वहां के शासक थे। हिन्दू उन्हें रामदेवजी और मुस्लिम उन्हें रामसा पीर कहते हैं बाबा रामदेव को द्वारिकाधीश का अवतार माना जाता है। इन्हें पीरों का पीर 'रामसा पीर' कहा जाता है। सबसे ज्यादा चमत्कारिक और सिद्ध पुरुषों में इनकी गणना की जाती है। हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रतीक बाबा रामदेव के समाधि स्थल रुणिचा में मेला लगता है। उन्होंने रुणिचा में जीवित समाधि ले ली थी।
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पांच पीर : स्थानीय जनश्रुति के आधार पर कहा जाता है कि चमत्कार होने से लोग गांव-गांव से रुणिचा आने लगे। यह बात रुणिचा और आसपास के गांव के मौलवियों को नहीं भाई। उन्हें लगा की इस्लाम खतरे में है। उनको लगा कि मुसलमान बने हिन्दू कहीं फिर से मुसलमान नहीं बन जाएं तो उन्होंने बाबा को नीचा दिखाने के लिए कई उपक्रम किए। जब उन पीरों और मौलवियों के प्रयास असफल हुए तब उन्होंने यह बात मक्का के मौलवियों और पीरों से कही। उन्होंने कहा कि भारत में एक ऐसा पीर पैदा हो गया है, जो अंधों की आंखें ठीक कर देता है, लंगड़ों को चलना सिखा देता है और यहां तक वह मरों को जिंदा भी कर देता है। मक्का के मौलवियों ने इस पर विचार किया और फिर उन्होंने अपने पूज्य चमत्कारिक 5 पीरों को जब बाबा की ख्याति और उनके अलौकिक चमत्कार के बारे में बताया तो वे पांचों पीर भी बाबा की शक्ति को परखने के लिए उत्सुक हो गए। कुछ दिनों में वे पीर मक्का से चलकर रुणिचा के रास्ते पर जा पहुंचे।
रास्ते में भी बाबा रामदेव से उनकी मुलाकात हुई। पांचों पीरों ने रामदेवजी से पूछा कि हे भाई! रुणिचा यहां से कितनी दूर है? तब रामदेवजी ने कहा कि यह जो गांव सामने दिखाई दे रहा है वही तो रुणिचा है। क्या मैं आपके रुणिचा आने का कारण पूछ सकता हूं? तब उन पांचों में से एक पीर बोला कि हमें यहां रामदेवजी से मिलना है और उसकी पीराई देखनी है। तब रामदेवजी बोले- हे पीरजी! मैं ही रामदेव हूं और आपके सामने खड़ा हूं, कहिए मेरे योग्य क्या सेवा है? पांचों पीर बाबा की बात सुनकर कुछ देर उनकी ओर देखते रहे फिर हंसने लगे और सोचने लगे कि साधारण-सा दिखाई देना वाला व्यक्ति ये पीर है क्या?
रामदेवजी बाबा ने उनकी आवभगत की और 'अतिथि देवो भव:' की भावना से उन्हें भोजन के लिए आमंत्रित किया। बाबा के घर जब पांचों पीरों के भोजन हेतु जाजम बिछाई गई, तकिए लगाए गए, पंखे लगाए गए और सेवा-सत्कार के सभी सामान सजाए गए, तब भोजन पर बैठते ही एक पीर बोला कि अरे, हम तो अपने खाने के कटोरे मक्का ही भूल आए हैं। हम तो अपने कटोरों में ही खाना खाते हैं, दूसरे के कटोरों में नहीं, यह हमारा प्रण है। अब हम क्या कर सकते हैं? आप यदि मक्का से वे कटोरे मंगवा सकते हैं तो मंगवा दीजिए, वर्ना हम आपके यहां भोजन नहीं कर सकते।
तब बाबा रामदेव ने उन्हें विनयपूर्वक कहा कि उनका भी प्रण है कि घर आए अतिथि को बिना भोजन कराए नहीं जाने देते। यदि आप अपने कटोरों में ही खाना चाहते हैं तो ऐसा ही होगा। इसके साथ ही बाबा ने अलौकिक चमत्कार दिखाया और जिस पीर का जो कटोरा था उसके सम्मुख रखा गया। इस चमत्कार (परचा) से वे पीर सकते में रह गए। जब पीरों ने पांचों कटोरे मक्का वाले देखे तो उन्हें अचंभा हुआ और मन में सोचने लगे कि मक्का कितना दूर है। ये कटोरे तो हम मक्का में छोड़कर आए थे। ये कटोरे यहां कैसे आए? तब उन पीरों ने कहा कि आप तो पीरों के पीर हैं।
पांचों पीरों ने कहा कि आज से आपको दुनिया रामापीर के नाम से पूजेगी। इस तरह से पीरों ने भोजन किया और श्रीरामदेवजी को 'पीर' की पदवी मिली और रामदेवजी, रामापीर कहलाए।