Sant Kabir Jayanti 2023 : संत कबीर रामानंद अर्थात रामानंदाचार्य के 12 शिष्यों में से एक थे। ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा के दिन संत कबीर की जयंती मनाई जाती है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस बार उनकी जयंती 4 जून 2023 रविवार के दिन मनाई जाएगी। कबीरदासजी सभी संतों में अलग थे। आओ जानते हैं कि कबीर क्यों अलग हैं सबसे?
1. कबीर हिन्दू थे या मुसलमान : कबीर हिंदू थे या मुसलमान यह सवाल आज भी जिंदा है। इसीलिए उन्हें सबसे अलग माना जाता है। कबीर का पहनावा कभी सूफियों जैसा होता था तो कभी वैष्णवों जैसा। हालांकि कबीरजी का पालन-पोषण नीमा और नीरू ने किया जो जाति से जुलाहे थे।
2. काशी से मगहर : कबीर को इसलिए भी सबसे अलग माना जाता है क्योंकि जहां लोग काशी में देह त्यागने की इच्छा रखते हैं वहीं उन्होंने मगहर में देह त्यागने का तय किया था क्योंकि ऐसी समाज में ऐसी मान्यता प्रचलित थी कि जो काशी में देह त्यागता है वह स्वर्ग और मगहर में त्यागता है वह नरक क जाता है।
3. शरीर हो गया गायब : ऐसी मान्यता है कि मृत्यु के बाद उनके शव को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया था। हिन्दू कहते थे कि उनका अंतिम संस्कार हिन्दू रीति से होना चाहिए और मुस्लिम कहते थे कि मुस्लिम रीति से। इसी विवाद के चलते जब उनके शव पर से चादर हट गई, तब लोगों ने वहां फूलों का ढेर पड़ा देखा। बाद में वहां से आधे फूल हिन्दुओं ने ले लिए और आधे मुसलमानों ने। मुसलमानों ने मुस्लिम रीति से और हिंदुओं ने हिंदू रीति से उन फूलों का अंतिम संस्कार किया। मगहर में कबीर की समाधि है और दरगाह भी।
4. परंपरा और मान्यताओं के खिलाफ : संत कबीर ने समाज में फैले धार्मिक पाखंड और अंध विश्वास पर चोट की। उन्होंने हिन्दू ही नहीं मुस्लिम धर्म की कुरितियों पर भी चोट कर समाज के लोगों को जगाया। इसलिए भी वे सभी संतों से अलग थे। जैसे वे कहते थे कि पाथर पूजे हरि मिले तो में पूजूं पहाड़। कंकर पत्थर जोड़ कर मस्जिद बना ली और उसके उपर चढ़कर मुल्ला जोर जोर से चीख कर अजान देता है। कबीर दास जी कहते हैं कि क्या खुदा बहरा हो गया है?
5. निर्गुण ब्रह्म की उपासना : भक्ति काल के दौर में अधिकतर संत सगुण भक्ति के गीत, भजन आदि बनाते और गाते थे परंतु संत कबीर ने जो मार्ग बनाया था वह निर्गुण ब्रह्म की उपासना का मार्ग था। निर्गुण ब्रह्म अर्थात निराकार ईश्वर की उपासना का मार्ग था। संत कबीर भजन गाकर उस परमसत्य का साक्षात्कार करने का प्रयास करते हैं। वे वेदों के अनुसार निकाराकर सत्य को ही मानते थे।
6. संत कबीर के भजन : संत कबीर का काव्य या भजन रहस्यवाद का प्रतीक है। यह निर्गुणी भजन है। वे अपने भजन के माध्यम से समाज के पाखंड को उजागर करते थे। ऐसे कितने ही उपदेश कबीर के दोहों, साखियों, पदों, शब्दों, रमैणियों तथा उनकी वाणियों में देखे जा सकते हैं, जो धर्म और समाज के पाखंड को उजागर करते हैं। इसी से कबीर को राष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रियता मिली और वे लोकनायक कवि और संत बने। आज भी उनके भक्ति गीत ग्रामीण, आदिवासी और दलित इलाकों में ही प्रचलित हैं। छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के गांवों में कबीर के गीतों की धून आज भी जिंदा है।