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श्रृंगी ऋषि कौन थे, जानिए

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अनिरुद्ध जोशी

श्रृंगी ऋषि नाम से पूर्व में दो ऋषि हुए हैं पहले रामायण के काल में हुए थे और दूसरे महाभारत के काल में हुए थे। दोनों ही एक महान और सिद्धि ऋषि थे। दोनों ही यज्ञ कार्य में दक्ष और पुरोहित भी थे। आओ जानते हैं संक्षिप्त जानकारी।
 
रामायण काल के श्रृंगी ऋषि : इन्हें ऋष्यशृंग भी कहा जाता है। प्रभु श्रीराम की एक मात्र बड़ी बहन थीं शां‍ता। शांता का विवाह महर्षि विभाण्डक के पुत्र ऋंग ऋषि से हुआ। एक दिन जब विभाण्डक नदी में स्नान कर रहे थे, तब नदी में ही उनका वीर्यपात हो गया। उस जल को एक हिरणी ने पी लिया था जिसके फलस्वरूप ऋंग ऋषि का जन्म हुआ था।
 
एक बार एक ब्राह्मण अपने क्षेत्र में फसल की पैदावार के लिए मदद करने के लिए राजा रोमपद के पास गया, तो राजा ने उसकी बात पर ध्‍यान नहीं दिया। अपने भक्‍त की बेइज्‍जती पर गुस्‍साए इंद्रदेव ने बारिश नहीं होने दी, जिस वजह से सूखा पड़ गया। तब राजा ने ऋंग ऋषि को यज्ञ करने के लिए बुलाया। यज्ञ के बाद भारी वर्षा हुई। जनता इतनी खुश हुई कि अंगदेश में जश्‍न का माहौल बन गया। तभी वर्षिणी और रोमपद ने अपनी गोद ली हुई बेटी शां‍ता का हाथ ऋंग ऋषि को देने का फैसला किया।
 
राजा दशरथ और इनकी तीनों रानियां इस बात को लेकर चिंतित रहती थीं कि पुत्र नहीं होने पर उत्तराधिकारी कौन होगा। इनकी चिंता दूर करने के लिए ऋषि वशिष्ठ सलाह देते हैं कि आप अपने दामाद ऋंग ऋषि से पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाएं। इससे पुत्र की प्राप्ति होगी। दशरथ ने उनके मंत्री सुमंत की सलाह पर पुत्रकामेष्ठि यज्ञ में महान ऋषियों को बुलाया। इस यज्ञ में दशरथ ने ऋंग ऋषि को भी बुलाया। ऋंग ऋषि एक पुण्य आत्मा थे तथा जहां वे पांव रखते थे वहां यश होता था। सुमंत ने ऋंग को मुख्य ऋत्विक बनने के लिए कहा। दशरथ ने आयोजन करने का आदेश दिया।
 
पहले तो ऋंग ऋषि ने यज्ञ करने से इंकार किया लेकिन बाद में शांता के कहने पर ही ऋंग ऋषि राजा दशरथ के लिए पुत्रेष्ठि यज्ञ करने के लिए तैयार हुए थे। कहते हैं कि पुत्रेष्ठि यज्ञ कराने वाले का जीवनभर का पुण्य इस यज्ञ की आहुति में नष्ट हो जाता है। इस पुण्य के बदले ही राजा दशरथ को पुत्रों की प्राप्ति हुई। राजा दशरथ ने ऋंग ऋषि को यज्ञ करवाने के बदले बहुत-सा धन दिया जिससे ऋंग ऋषि के पुत्र और कन्या का भरण-पोषण हुआ और यज्ञ से प्राप्त खीर से राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का जन्म हुआ। ऋंग ऋषि फिर से पुण्य अर्जित करने के लिए वन में जाकर तपस्या करने लगे। ऐसा माना जाता है कि ऋंग ऋषि और शांता का वंश ही आगे चलकर सेंगर राजपूत बना। सेंगर राजपूत को ऋंगवंशी राजपूत कहा जाता है।
 
महाभारत काल के श्रृंगी ऋषि : पाण्डवों के स्वर्गारोहण के बाद अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित ने शासन किया। उसके राज्य में सभी सुखी और संपन्न थे। एक बार राजा परीक्षित शिकार खेलते-खेलते बहुत दूर निकल गए। परीक्षित शिकार के लिए बहुत भटके लेकिन कहीं शिकार नहीं मिला। अंत में वे प्यास बुझाने के लिए भटकते हुए ऋषि शमिक के आश्रम में पहुंच जाते हैं जहां ऋषि समाधी में लीन मिलते हैं।
 
राजा ने ऋषि से कहा कि हमें प्यास लगी है हमें पानी चाहिए, लेकिन ऋषि तो समाधी में थे। राजा परीक्षित ने कई बार ऋषि से पानी मांगा, लेकिन ऋषि ने कोई जवाब नहीं दिया। उस वक्त राजा के मुकुट में कलियुग बैठा था राजा को क्रोध आया और उन्होंने उनका वध करने के लिए धनुष पर बाण चढ़ा दिया, लेकिन संस्कारवश उन्होंने खुद को ऋषि की हत्या करने से रोक लिया। तब उन्होंने वहां मरे पड़े एक सांप को महर्षि शमिक के गले में डाल दिया और वहां से चले गए।
 
उस शमिक ऋषि का किशोर पुत्र श्रृंगी एक नदी में स्नान कर रहा था। उसके साथियों ने उसे बताया कि किस तरह राजा पारीक्षित ने उनके पिता के गले में सर्प डाल दिया। श्रृंगी को क्रोध आ गया और वह नदी से अंजुली में जल भरकर राजा को शाप देता है कि आज से 7वें दिन उस राजा को तक्षक नाम का सांप डंसेगा और वह मर जाएगा।
 
बाद में शमिक ऋषि की समाधी खुलती है तो वे पूछते हैं कि यह सांप कहां से आया? फिर उन्हें उनका पुत्र श्रृंगी सारा किस्सा बताता है। यह सुनकर शमिक ऋषि अपने पुत्र से कहते हैं कि तुमने बिना जाने ही उन्हें दंड दे दिया वत्स, तुमने एक छोटीसी भूल के लिए इतना भयानक शाप दे दिया। वह राजा वैदिक ऋषियों की रक्षा करने वाला और आर्य धर्म व प्रजा को संवरक्षण देने वाला है। उसके मारे जाने से राज्य में अत्याचार और अनाचार बढ़ेगा और इस घोर पाप का दोष तुम्हें भी लेगा।
 
श्राप के चलते 7वें दिन राजा परीक्षित सांप के डंसने मर जाते हैं। राजा परीक्षित की मृत्यु का कारण जब उनके पुत्र जनमेजय को पता चला तो उन्होंने संकल्प लिया की मैं एक ऐसा यज्ञ करूंगा जिसके चलते सभी नाग जाति का समूलनाश हो जाएगा। जनमेजय के यज्ञ के चलते एक एक करके सभी नाग यज्ञ की शक्ति से खिंचाकर उसमें भस्म होते जा रहे थे। कद्रू और कश्यप के पुत्र वासुकी की बहन देवी मनसा ने नागों की रक्षार्थ जन्म लिया था। अधिकतर जगहों पर मनसा देवी के पति का नाम ऋषि जरत्कारु बताया गया है और उनके पुत्र का नाम आस्तिक (आस्तीक) है जिसने अपनी माता की कृपा से सर्पों को जनमेयज के यज्ञ से बचाया था।


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