Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia

आज के शुभ मुहूर्त

(सप्तमी तिथि)
  • तिथि- पौष कृष्ण सप्तमी
  • शुभ समय-9:11 से 12:21, 1:56 से 3:32
  • व्रत/मुहूर्त-श्री रामानुजन ज., राष्ट्रीय गणित दि.
  • राहुकाल- सायं 4:30 से 6:00 बजे तक
webdunia
Advertiesment

हम स्वामी विवेकानंद से क्या सीख सकते हैं, हमेशा याद रखने वाली ये 4 बातें दिलाएगी सफलता

हमें फॉलो करें हम स्वामी विवेकानंद से क्या सीख सकते हैं, हमेशा याद रखने वाली ये 4 बातें दिलाएगी सफलता
, बुधवार, 12 जनवरी 2022 (11:47 IST)
Yuva divas 2022 : स्वामी विवेकानंद जी के जन्म दिवस को युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। उनका जन्म 12 जनवरी सन्‌ 1863 को कोलकाता में हुआ था। मात्र 39 साल की उम्र में 4 जुलाई 1902 को उन्होंने महासमाधि ले ली थी। आओ जानते हैं स्वामी विवेकानंद की हमेशा याद रखने वाली 4 सरल बातें जो दिलाएगी सफलता।
 
 
1. एकाग्रता : किसी भी कार्य में सफलता के लिए एकाग्रता जरूरी है। पढ़ने के लिए एकाग्रता का बहुत महत्व है क्योंकि जब तक एकाग्रता नहीं है तब तक जो पढ़ा जा रहा है या जो पढ़ाया जा रहा है वह समझ में नहीं आ सकता। विवेकानंद एक बड़े विद्वान देवसेन के साथ ठहरे थे। उनके पास एक नई प्रकाशित पुस्‍तक थी। विवेकानंद ने कहा- क्‍या मैं इसे देख सकता हूं? देवसेन ने कहा- जरूर देख सकते हो, मैंने इसे बिलकुल नहीं पढ़ा है, क्योंकि यह अभी ही प्रकाशित हुई है।
 
कोई आधे घंटे बाद विवेकानंद ने पुस्‍तक लौटा दी। देवसेन को भरोसा न हुआ। इतनी बड़ी पुस्‍तक पढ़ने के लिए तो कम से कम एक सप्‍ताह चाहिए। उसने कहा- क्‍या आपने सच मैं पूरा पढ़ लिया इसे या यूं ही इधर-उधर निगाह डाल ली?
 
विवेकानंद ने कहा- मैंने इसे भलीभांति पढ़ लिया। देवसेन ने कहा- मैं विश्‍वास नहीं कर सकता। मुझे पढ़ने दें और फिर मैं आपसे पुस्‍तक के संबंध में कुछ प्रश्‍न पुछूंगा।
 
देवसेन ने सात दिन तक पुस्‍तक पढ़ी और फिर उसने कुछ प्रश्‍न पूछे, जिसका विवेकानंद ने एकदम सही उत्तर दिया। देवसन को आश्चर्य हुआ। उन्होंने अपने संस्‍मरणों में लिखा- मेरे लिए असंभव थी यह बात और मैंने पूछा कि कैसे संभव हुआ यह? तब विवेकानंद ने कहा- जब तुम शरीर द्वारा अध्‍ययन करते हो तो एकाग्रता संभव नहीं है। तुम शरीर में बंधे नहीं होते हो तब तुम किताब से सीधे जुड़ते हो। तुम्‍हारे और किताब के बीच कोई बाधा नहीं होती। तब आधा घंटा भी पर्याप्‍त होता है। तुम उसका अभिप्राय, उसका सार आत्‍मसात कर लेते हो।
webdunia
Swami Vivekananda Jayanti
2. निर्भय बनो: एक बार की बात है स्वामी विवेकनन्द बनारस में मां दुर्गा के मंदिर से लौट रहे थे, तभी रास्ते में बंदरों के एक झुंड ने उन्हें घेर लिया। स्वामीजी के हाथ में प्रसाद थी जिसे बंदरों छीनने का प्रयास कर रहे थे। स्वामीजी बंदरों द्वारा इस तरह से अचानक घेरे जाने और झपट्टा मारने के कारण भयभीत होकर भागने लगे। बंदर भी उनके पीछे भागने लगे। बंदरों ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। तभी पास खड़े एक बुजुर्ग संन्यासी ने हंसते हुए विवेकानंद से कहा- रुको! डरो मत, उनका सामना करो और देखो क्या होता है। तुम जितना भागोगे वे तुम्हें उतना भगाएंगे। संन्यासी की बात मानकर वह फौरन पलटे और बंदरों की तरफ दृढ़ता से बढ़ने लगे। यह देखकर बंदर भयभीत होकर सभी एक-एक कर वहां से भागने लगे। इस घटना से स्वामी जी को एक गंभीर सीख मिली। अगर तुम किसी चीज से डर गए हो, तो उससे भागो मत, पलटो और सामना करो।
 
3. संदेह और जिज्ञासा : स्वामी विवेकानंद मानते थे कि किसी भी बात को जानने और समझने के लिए मन में जिज्ञासा और संदेह होना जरूरी। संदेह से ही प्रश्न उत्पन्न होते हैं और जिज्ञासा से ही उत्तरों की खोज प्रारंभ होती है। कहते हैं कि स्वामी जी जैसे-जैसे बड़े होते गए सभी धर्म और दर्शनों के प्रति अविश्वास से भर गए। संदेहवादी, उलझन और प्रतिवाद के चलते किसी भी विचारधारा में विश्वास नहीं किया और वे नास्तिकता की राह पर चल पड़े थे। अपनी जिज्ञासाएं शांत करने के लिए ब्रह्म समाज के अलावा कई साधु-संतों के पास भटकने के बाद अंतत: वे रामकृष्ण परमहंस की शरण में गए। रामकृष्ण के रहस्यमय व्यक्तित्व ने उन्हें प्रभावित किया, जिससे उनका जीवन बदल गया। 1881 में रामकृष्ण को उन्होंने अपना गुरु बनाया। संन्यास लेने के बाद इनका नाम विवेकानंद हुआ।
 
4. रुको मत चलते चलो : एक बार की बात है कि स्वामी विवेकानंद हिमालय की यात्रा कर रहे थे। तभी वहां उन्होंने एक वृद्ध को देखा जो बिना कोई आशा लिए अपने पैरों की तरफ देख रहा था और आगे जाने वाले रास्ते की तरफ देख रहा था। उस वृद्ध से स्वामी जी को देखकर कहा कि हे महोदय! इस लंबी और कठिन दूरी को कैसे पार किया जाए? अब मैं और नहीं चल सकता, मेरी छाती में दर्द हो रहा है।
 
स्वामीजी ने शांति से उस इंसान की बातों सुना और फिर कहा, 'नीचे अपने पैरों की ओर देखो। तुमने इन्हीं पैरों से इतना लंबा सफर तय किया है। तुम्हारे पैरों के नीचे जो रास्ता है, यह वो वह रास्ता है जिसे तुमने पार कर लिया है और यह वही रास्ता था जो पहले तुमने अपने पैरों के आगे देखा था, अब आगे आने वाला रास्ता भी जल्द ही तुम्हारे पैरो के नीचे होगा। बस बढ़ते चलो। स्वामीजी के इन शब्दों ने उस वृद्ध इंसान को अपने लक्ष्य को पूरा करने में काफी सहायता की। इससे यह सीख मिलती है कि तब तक मत रुको जब तक की लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर लेते।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

सूर्य नमस्कार छत या बगीचे में कैसे करें, जानिए सरल विधि