Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
  • तिथि- कार्तिक शुक्ल द्वितीया
  • शुभ समय-9:11 से 12:21, 1:56 से 3:32 तक
  • व्रत/मुहूर्त-भाई दूज, चित्रगुप्त पूजा, यम द्वितीया/यमुना स्नान
  • राहुकाल- सायं 4:30 से 6:00 बजे तक
webdunia
Advertiesment

देवर्षि ही नहीं, दिव्य पत्रकार भी हैं महर्षि नारद मुनि

हमें फॉलो करें देवर्षि ही नहीं, दिव्य पत्रकार भी हैं महर्षि नारद मुनि
* दुनिया के प्रथम संवाददाता देवर्षि नारद की जयंती
 
सृष्‍टि के प्रथम संदेशवाहक देवर्षि नारद नाम सुनते ही इधर-उधर विचरण करने वाले व्यक्तित्व की अनुभूति होती है। आम धारणा यही है कि देवर्षि नारद ऐसी 'विभूति' हैं जो 'इधर की उधर' करते रहते हैं। प्रायः नारद को चुगलखोर के रूप में जानते हैं। लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है। मेरा मत है कि नारद इधर-उधर घूमते हुए संवाद-संकलन का कार्य करते हैं।

 
इस प्रकार एक घुमक्कड़, किंतु सही और सक्रिय-सार्थक संवाददाता की भूमिका निभाते हैं और अधिक स्पष्ट शब्दों में कहूं तो यह कि देवर्षि ही नहीं दिव्य पत्रकार भी हैं नारद।
 
महर्षि वेदव्यास विश्व के पहले संपादक हैं- क्योंकि उन्होंने वेदों का संपादन करके यह निश्चित किया कि कौन-सा मंत्र किस वेद में जाएगा अर्थात्‌ ऋग्वेद में कौन-से मंत्र होंगे और यजुर्वेद में कौन से, सामवेद में कौन से मंत्र होंगे तथा अर्थर्ववेद में कौन से? वेदों के श्रेणीकरण और सूचीकरण का कार्य भी वेदव्यास ने किया और वेदों के संपादन का यह कार्य महाभारत के लेखन से भी अधिक कठिन और महत्वपूर्ण था।

 
देवर्षि नारद दुनिया के प्रथम पत्रकार या पहले संवाददाता हैं, क्योंकि देवर्षि नारद ने इस लोक से उस लोक में परिक्रमा करते हुए संवादों के आदान-प्रदान द्वारा पत्रकारिता का प्रारंभ किया। इस प्रकार देवर्षि नारद पत्रकारिता के प्रथम पुरुष/पुरोधा पुरुष/पितृ पुरुष हैं। जो इधर से उधर घूमते हैं तो संवाद का सेतु ही बनाते हैं। जब सेतु बनाया जाता है तो दो बिंदुओं या दो सिरों को मिलाने का कार्य किया जाता है। 
 
दरअसल देवर्षि नारद भी इधर और उधर के दो बिंदुओं के बीच संवाद का सेतु स्थापित करने के लिए संवाददाता का कार्य करते हैं। इस प्रकार नारद संवाद का सेतु जोड़ने का कार्य करते हैं तोड़ने का नहीं। परंतु चूंकि अपने ही पिता ब्रह्मा के शाप के वशीभूत (देवर्षि नारद को ब्रह्मा का मानस-पुत्र माना जाता है। ब्रह्मा के कार्य में पैदा होते ही नारद ने कुछ बाधा उपस्थित की। अतः उन्होंने नारद को एक स्थान पर स्थित न रहकर घूमते रहने का शाप दे दिया।)

 
नारद को इधर से उधर (इस लोक से उस लोक में) घूमना पड़ता है तो इसमें संवाद की जो अदला-बदली हो जाती है उसे लोगों ने नकारात्मक दृष्टि से देखा और नारद को 'भिड़ाने वाले' या 'कलह कराने वाले' किरदार के फ्रेम में फिट कर दिया। नारद की छवि को इस प्रकार प्रस्तुत किया कि वे 'चोर को कहते हैं कि चोरी कर और साहूकार को कहते हैं कि जाग।' लेकिन यह सच नहीं है। सच तो यह है कि नारद घूमते हुए सीधे संवाद कर रहे हैं और सीधे संवाद भेज रहे हैं इसलिए नारद सतत सजग-सक्रिय हैं यानी नारद का संवाद 'टेबल-रिपोर्टिंग' नहीं 'स्पॉट-रिपोर्टिंग' है इसलिए उसमें जीवंतता है।

 
मेरे मत में पत्रकारिता, पाखंड की पीठ पर चुनौती का चाबुक है और देवर्षि नारद इधर-उधर घूमते हुए जो पाखंड देखते हैं उसे खंड-खंड करने के लिए ही तो लोकमंगल की दृष्टि से संवाद करते हैं। रामावतार से लेकर कृष्णावतार तक नारद की पत्रकारिता लोकमंगल की ही पत्रकारिता और लोकहित का ही संवाद-संकलन है। उनके 'इधर-उधर' संवाद करने से जब राम का रावण से या कृष्ण का कंस से दंगल होता है तभी तो लोक का मंगल होता है। अतः देवर्षि नारद दिव्य पत्रकार के रूप में लोकमंडल के संवाददाता हैं।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

कैसे होते हैं वृष राशि वाले जातक, जानिए अपना व्यक्तित्व...