Osho Rajneesh: 11 दिसंबर को ओशो रजनीश का जन्मोत्सव मनाया जाता है। पुणे स्थिति ओशो आश्रम में दुनियाभर के लोग ओशो का जन्मदिन मनाने के लिए एकत्रित होते हैं। ओशो रजनीश का जन्म 11 दिसम्बर, 1931 को कुचवाड़ा गांव, बरेली तहसील, जिला रायसेन, राज्य मध्यप्रदेश में एक जैन परिवार में हुआ था। उनका प्रारंभिक नाम चंद्र मोहन जैन था। ओशो रजनीश के तीन गुरु थे। मग्गा बाबा, पागल बाबा और मस्तो बाबा। इन तीनों ने ही रजनीश को आध्यात्म की ओर मोड़ा, जिसके चलते उन्हें उनके पिछले जन्म की याद भी आई। ओशो को जबलपुर में 21 वर्ष की आयु में 21 मार्च 1953 मौलश्री वृक्ष के नीचे संबोधि की प्राप्ति हुई। 19 जनवरी 1990 को पूना स्थित अपने आश्रम में सायं 5 बजे के लगभग अपनी देह त्याग दी। ओशो रजनीश एक दार्शनिक से ज्यादा रहस्यदर्शी और अध्यात्मिक गुरु थे। उनके विचारों ने दर्शन, साहित्य, राजनीति, धर्म, समाज और शिक्षा को प्रभावित किया है। उनके विचारों का आज भी महत्व है।
1. ओशो ने कहा था, 'मेरे बारे में जितनी गालियां निकलती है, उतनी शायद ही किसी के बारे में निकलती होगी, लेकिन मेरा कार्य है कि धर्म और राष्ट्र के झूठ को, पाखंड को उजागर करना तो वह मैं करता रहूंगा।...मुझे भारत में समझा जाने लगेगा लेकिन थोड़ी देर से।'
2. ओशो कहते हैं कि पंडित, पुरोहित, मुल्ला, फादर और राजनेता यह सभी मानव और मानवता के शोषक हैं। मानवता के इन हत्यारों के प्रति जल्द ही जागृत होना जरूरी है, अन्यथा ये मूढ़ सामूहिक आत्महत्या के लिए मजबूर कर देंगे। ओशो कहते हैं कि मनुष्य को धर्म और राजनीति ने मार डाला है आज हमें हिंदू, मुसलमान, ईसाई और अन्य कोई नजर आते हैं, लेकिन मनुष्य नहीं।
3. ओशो किसी धर्म या राष्ट्र के खिलाफ नहीं थे। उन्होंने धर्म की झूठी बातों और पाखंड को उजागर किया। उनका कहना था कि धार्मिक कट्टरता मनुष्य और धरती के भविष्य के लिए खतरा है। खासकर वे धर्म जो यह मानते हैं कि उनकी किताबों लिखा हुआ ही सत्य है बाकि की किताबों को जला देना चाहिए। आज दुनिया में सांप्रदायिकता, तानाशाही और साम्यवाद सभी मानवता के दुश्मन है। जीवन पर्यन्त ओशो हर तरह के 'वाद' का इसलिए विरोध करते रहे कि आज जिस वाद के पीछे दुनिया पागल है दरअसल वह अब शुद्ध रहा कहां। इसलिए ओशो ने जब पहली दफे धर्मग्रंथों पर सदियों से जमी धूल को झाड़ने का काम किया तो तलवारें तन गईं। यह तलवारें आज भी तनी हुई हैं।
4. वर्तमान में सभी एक दूसरे के स्वार्थ को साथने में लगे हैं। जनता में कुछ मुठ्ठीभर लोग हैं, जो सच में ही मनुष्य हैं बाकी तो सभी भीड़ का हिस्सा मात्र हैं और कहते हैं कि भीड़ का कोई दिमाग नहीं होता। पहले से कहीं ज्यादा भारतीय जनता को भ्रमित कर दिया गया है, लेकिन फिर भी विचार को रोका नहीं जा सका। नकली साधुओं की फौज जो ओशो जैसी ही दाड़ी और चोगा पहनकर प्रवचन देने लगी है, वे भीतर से कितने खोखले हैं यह तो वे ही जानते होंगे आखिर स्वयं से कब तक बचेंगे? उन्होंने धर्म का सत्यानाश करके तो रख ही दिया।
5. ओशो ने सैकड़ों पुस्तकें लिखीं, हजारों प्रवचन दिए। उनके प्रवचन पुस्तकों, ऑडियो कैसेट तथा वीडियो कैसेट के रूप में उपलब्ध हैं। उन्होंने अपने क्रांतिकारी विचारों से दुनियाभर के वैज्ञानिकों, बुद्धिजीवियों और साहित्यकारों को प्रभावित किया। जब कोई व्यक्ति ओशो की किताबें पढ़ता या प्रवचनों की कैसेट सुनता है तो ये लोग सलाह देते हैं कि 'पढ़ो, पर उनकी बातें मानना मत। वे जैसा कहें, वैसा करना मत।' दरअसल, यह ऐसी बात हुई कि आप लोगों से कहें कि 'गुड़ तो खा लें लेकिन गुलगुले से परहेज करें।' सचमुच यह ओशो के विचारों का डर है, जो तब भी समाज में था और आज भी है।
6. वर्तमान समय में ओशो के विचारों का महत्व बढ़ गया है क्योंकि हर कोई अपने धर्म को पकड़कर बैठा है और हर कोई किसी न किसी न किसी को धर्मांतरित करना चाहता है। यह दुनिया एक खतरनाक मोड़ पर या कि चौराहे पर खड़ी है जहां से अब उसे तय करना है कि मनुष्य जाति का विनाश करना है या कि विकास।
वर्तमान समय भें ओशो के विचार का ज्यादा महत्व है:-
1. ओशो कहते हैं कि धर्म व्यक्तिगत है। धर्म के संगठन नहीं होना चाहिए। संगठित धर्मों ने दुनिया को नर्क बनाकर रखा है।
2. ओशो के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को उसके तरीके से उसे जीवन जीने, खाने, काम को चुनने, पहनने और बोलने की आजादी मिलना चाहिए। धर्म और राष्ट्र यह तय नहीं कर सकते हैं।
3. प्रत्येक व्यक्ति को हमें शांति, अहिंसा, प्रेम या एकता सिखाने के बजाए हमें ध्यान सिखाना चाहिए। ध्यान से खुद ब खुद ही प्रेम और अहिंसा का जन्म होगा। ध्यान और आंतरिक जागरूकता का अभ्यास करने से व्यक्ति के अंदर शांति और संतुलन आता है। हालांकि इसे सिखेन के लिए हमें किसी पर दबाव नहीं डालना चाहिए।
4. विवाह में सभी तरह की बाधाएं खड़ी कर दो ताकि व्यक्ति सोच समझकर विवाह करें। वर्तमान में विवाह करना आसान है लेकिन तलाक लेना कठिन। ओशो के अनुसार प्रेम और विवाह बिना शर्तों और बंधनों के होना चाहिए।
5. ओशो का मानना था कि धर्म और राजनीति एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, जिनका मकसद लोगों पर नियंत्रण करना है। अब इन की विदाई होना चाहिए।
6. ओशो का मानना था कि समय के साथ-साथ मूल्य भी बदलते हैं। जो व्यक्ति समय के साथ बदलता है, वही जीवित रहता है। ओशो का मानना था कि जिंदगी में जो करना हो, वह ज़रूर करना चाहिए।
7. ओशो के अनुसार धर्म के मार्ग पर तभी चलना चाहिए जबकि हम संसार का स्वाद चख चुके हों। त्याग धर्म नहीं है। धर्म तो जागरण और मोक्ष का मार्ग है।
8. ओशो के अनुसार विज्ञान को समाज का आधार बनाया जाना चाहिए और ज्यादा से ज्यादा वैज्ञानिक शिक्षा पर जोर दिया जाना चाहिए।
9. ओशो के अनुसार व्यक्ति में कुछ पाने नहीं कुछ करने और कुछ खोजने की प्रवृत्ति होना चाहिए। वे लोग अभागे हैं तो धर्म और राष्ट्र की सोच में बंधे हैं।
10. ओशो के अनुसार जीवन ही है प्रभु और न खोजना कहीं। इसलिए जीवन को जितना सुंदर, समृद्ध और शांतिपूर्ण बना सकते हो बनाओ।