गोस्वामी तुलसीदास का जन्म 1497 ई० में उत्तरप्रदेश के राजापुर में हुआ। उनका जन्म नाम रामबोला था। उन्होंने अपने जीवनकाल में श्रीरामचरितमानस, हनुमान चालीसा, वैराग्य सन्दीपनी, जानकी मंगल, पार्वती मंगल, संकटमोचन हनुमानाष्टक, हनुमान बाहुक, विनयपत्रिका, दोहावली, कवितावली आदि अनेक ग्रंथों की रचना की। इतना ही नहीं वे संस्कृत के विद्वान और हिंदी के सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं।
एक समय की बात है। एक बार गोस्वामी तुलसीदास जी काशी में विद्वानों के मध्य बैठकर भगवत् चर्चा कर रहे थे कि दो देहाती कौतूहलवश वहां आ गए।
वे दोनों गोस्वामीजी के ही ग्राम के थे और गंगा स्नान करने काशी गए थे। दोनों ने तुलसीदास जी को पहचाना और उनमें से एक देहाती दूसरे से बोला, 'अरे भैया, यह तुलसिया अपे संग खेला करता था। आज तिलक लगा लिया तो इसकी काफी पूछताछ हो रही है। इसका तो रंग-ढंग ही बदला-बदला नजर आ रहा है। देखो तो लोग इसकी बातें कितनी तन्मयता से सुन रहे हैं। लगता है कि यह सचमुच बड़ा आदमी बन गया है।'
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दूसरे ने भी हामी भरते हुए कहा, 'हां भैया, यह तो पक्का बहुरूपिया है। कैसा ढोंग कर रहा है यहां! पहले तो यह ऐसा न था, हम लोगों के साथ खेलता-कूदता था लेकिन यहां आकर तो यह पक्का बहुरूपिया बन गया है।'
तुलसीदासजी ने उन्हें देखा तो वे उनके पास चले आए और दोनों से उनका हालचाल पूछा।
तब उनमें से एक बोला, 'अरे तुलसिया, तूने यह क्या भेस बना रखा है? तू सबको धोखे में डाल सकता है पर हम लोग तेरे धोखे में नहीं आएंगे। हम तो जानते हैं कि तू वह नहीं है, जो प्रदर्शित कर रहा है।'
तुलसीदास उन दोनों के गंवारपन पर मन ही मन मुस्करा उठे और हठात उनके मुंह से यह दोहा निकला -
तुलसी वहां न जाइए, जन्मभूमि के ठाम। गुण-अवगुण चीह्ने नहीं, लेत पुरानो नाम।
उन्होंने जब दोनों को इस दोहे का अर्थ समझाया, तब कहीं उन्हें विश्वास हुआ कि तुलसिया वास्तव में कोई महात्मा बन गया है।
यह सच है कि सबसे निकट रहने वाला व्यक्ति ही हमारे गुणों से अनजान रहता है।
ऐसे महान कवि गोस्वामी तुलसीदास ने संवत् 1680 (1623 ई.) में श्रावण कृष्ण तृतीया के दिन 'राम-राम' का जप करते हुए काशी में अपना शरीर त्याग कर दिया।