भारत के कई संतों ने समाज में भाईचारा बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया है। ऐसे संतों में संत रविदास का नाम अग्रगण्य है। ऐसे महान संत का जन्म सन् 1398 में काशी (उत्तरप्रदेश) हुआ था। वे बचपन से समाज के बुराइयों को दूर करने के प्रति अग्रसर रहे। उनके जीवन की छोटी-छोटी घटनाओं से उनके विशिष्ठ गुणों का पता चलता है।
उन्होंने अपनी अनेक रचनाओं के माध्यम से समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने में महत्वपूर्ण योगदान किया। उनकी लोक-वाणी का अद्भुत प्रयोग था, जिसका मानव धर्म और समाज पर अमिट प्रभाव पड़ता है। उन्होंने समाज में फैली छुआ-छूत, ऊँच-नीच दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
बचपन से ही रविदास का झुकाव संत मत की तरफ रहा। वे सन्त कबीर के गुरूभाई थे। 'मन चंगा तो कठौती में गंगा' यह उनकी पंक्तियाँ मनुष्य को बहुत कुछ सीखने का अवसर प्रदान करती है। 'रविदास के पद', 'नारद भक्ति सूत्र' और 'रविदास की बानी' उनके प्रमुख संग्रहों में से हैं।
एक समय जब एक पर्व के अवसर पर पड़ोस के लोग गंगा-स्नान के लिए जा रहे थे। रविदास के शिष्यों में से एक ने उनसे भी चलने का आग्रह किया तो उन्होंने अपने शिष्य से कहा- गंगा-स्नान के लिए मैं अवश्य चलता किन्तु एक व्यक्ति को जूते बनाकर आज ही देने का वचन मैंने दे दिया है।
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यदि मैं उसे आज जूते नहीं दे सका तो मेरा वचन भंग हो जाएगा। गंगा स्नान के लिए जाने पर मन यहाँ लगा रहेगा तो पुण्य कैसे प्राप्त होगा? मेरा मानना है कि अपना मन जो काम करने के लिए अन्त:करण से तैयार हो वही काम करना उचित है। अगर मन सही है तो इस कठौते के जल में ही गंगा स्नान का पुण्य प्राप्त हो सकता है।
ऐसे मानवता के उद्धारक रविदास का संदेश दुनिया के लिए बहुत कल्याणकारी है। दुनिया भर में उनको भक्तों की एक लंबी श्रृंखला है। ऐसे महान संत की गणना केवल भारत में ही नहीं अपितु विश्व के महान संतों में की जाती है। जिन्हें संत शिरोमणि गुरु रविदास से नवाजा गया है। संत रविदास की वाणी के अनुवाद संसार की विभिन्न भाषाओं में पाए जाते हैं।