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गृहस्थ जीवन में साधुता अपनाना संभव

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हमें फॉलो करें स्वामी राजेश्वरानंद सरस्वती
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हम गृहस्थ जीवन में रहकर भी साधुता प्राप्त कर सकते हैं। उक्त उद्गार प्रवचन में स्वामी राजेश्वरानंद सरस्वती ने भरत प्रसंग पर व्यक्त किए। उन्होंने प्रसंग की चौपाई तात भरत तुम सब विधि साधु को केन्द्रित करते हुए कहा कि भरत के जीवन में क्षमा, धैर्य, करुणा, त्याग, प्रेम व साहस का जो अद्भुत समन्वय रहा वह सबमें होना चाहिए।

उन्होंने कहा कि भगवान राम के वन जाने पर भरत ने अयोध्या की राज व्यवस्था को जिस तरह संभाला वह आज के संदर्भ में अनुकरणीय है। भरत निष्काम भक्ति के प्रतीक हैं। साथ ही उनके मन में जनकल्याण की भावना भरी हुई है। वे भक्ति के माध्यम से समाज को यह संदेश देना चाहते हैं कि हम एक संयमित जीवन शैली अपनाएँ और स्वयं का एवं समाज का कल्याण करें।

स्वामी जी ने साधुता का अर्थ बताते हुए कहा कि भरत सब प्रकार से साधु हैं,इसका आध्यात्मिक अर्थ है कि हमें भीतर और बाहर समान रूप से बदलना होगा। अकेले साधु का वेश धारण करने से कोई साधु नहीं हो जाता है। व्यक्ति को भीतर से भी बदलना जरूरी है।

भारत वर्ष का विश्व में महत्वपूर्ण स्थान इसलिए है कि हमारे यहाँ रामचरित मानस जैसा सद्ग्रंथ है जो हमें जीवन व्यवहार की शिक्षा देता है।

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