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चातुर्मास जीवन सँवारने का मार्ग

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श्रावक को चातुर्मास में अपनी जीने की शैली सुधारना चाहिए। अज्ञानता को निकालकर भाव और क्रिया को भी सुधारना चाहिए। जैसा जीवन हमारे पूर्वजों, महात्माओं, तीर्थंकरों ने जीया उसी प्रकार से जीना चाहिए। उक्त प्रेरक विचार मुनिश्री महेन्द्रसागरजी ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।

धन, समय, ऊर्जा सब आपका लगा है अगर आपने इसका उपयोग नहीं किया तो आपका ही बिगाड़ा होगा। सज्जनों का काम सुपड़ी जैसा होता है जो असार को बाहर कर सार को ग्रहण करता है। वहीं दुर्जनों का काम चलनी जैसा है जो सार को निकालकर असार को ग्रहण करता है।

मुनिश्री ने कहा कि क्रोधादि कषायों का विग्रह करने एवं दान, शील, तप एवं ज्ञान की साधना करने हेतु चातुर्मास होता है। 'भाग्य फले त्यारे लक्ष्मी मिले सौभाग्य खुले त्यारे गुरुवर मिले।' इसलिए हमें कषायों को त्याग कर धर्म का मार्ग अपनाना चाहिए।

चौरासी लाख योनियों में मानव योनि प्रमुख है। मनुष्य को सागर के तूफान की ओर ध्यान देने की बजाए सागर की गहराई का मार्ग चुनना चाहिए। चातुर्मास के दौरान सभी प्राणियों पर दयाभाव रखकर हमें अपना जीवन सुधारने का लक्ष्य जीवन में अपनाना चाहिए।

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