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जनमानस को संवेदनशील बनना जरूरी

विदेशी भौतिक पदार्थों से दूर रहे...

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'आज आतंकवादियों से ज्यादा खतरा नक्सलपंथियों से है। हमें जवानों की लाशें दिखाई देती हैं, पर हम संवेदनशील नहीं हैं। हम बच्चे के सुख की चिंता तो करते हैं, पर उसके हित की नहीं। हम गुणों के अनुरागी नहीं, साधनों के अनुरागी हैं। विदेशी भौतिक पदार्थों को लाकर खुश होते हैं। श्रद्धा वह चीज है जो समर्पण करती है। पांडित्य के प्रदर्शन से निर्वाण प्राप्त नहीं होगा।'

ये प्रेरक विचार आचार्यश्री ने धर्मसभा में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि यह सच है कि तिजोरी में कोई कचरा नहीं रखता, खीर में कोई नमक नहीं डालता, परंतु पेट में बाजार के कैसे-कैसे पदार्थ डालते हैं। बासी रोटी खाना हम पसंद नहीं करते, परंतु बाजार की चीजें जो कई दिनों की बासी होती हैं वे बड़े मजे से खाते हैं। जहाँ हमें संवेदनशील होना चाहिए वहाँ हम विचारशील हैं।

हमें चाहिए कि हम बाजारी वस्तुओं का त्याग कर घर पर बनीं शुद्ध और सात्विक भोजन पर ध्यान दें। जैसा हमारा खाना होगा वैसे हमारे विचार उत्पन्न होंगे। हमें बाजार में निर्मित खाद्य पदार्थों को खाने से परहेज करना चाहिए ताकि हम स्वस्थ रह सकें। आज जो संस्कार हम ग्रहण कर रहे हैं वहीं कल हमारे बच्चों भी ग्रहण करेंगे और वे हमारे पदचिह्नों पर चलेंगे। ऐसे में पहले हमें अपने संस्कार, अपने कर्म सुधारने होंगे तभी हम अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देकर एक अच्छे समाज और भविष्य का निर्माण कर पाएँगे।

दुनिया में बढ़ते नक्सलपंथियों से हमें दूर रहना चाहिए। भगवान हमें अच्छे कर्म, अच्छा आचार-विचार अपनाने की प्रेरणा देते हैं। वे कभी नहीं कहते कि आप एक-दूसरे के धर्मों के लोगों को बरगला कर नक्सलपंथी की भूमिका अपनाएँ। हमारे अच्छे आचरण से ही देश का कल्याण होगा।

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