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प्रेमी हृदय बनने से प्राप्त होंगे भगवान

भक्तों का जीवन त्याग और समर्पण

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संत युवराज ने अपने प्रवचन में कहा कि जहाँ अपने समस्त रस समूह के बीच रसाधिपति प्रकट होकर सभी को समरसता प्रदान करते हैं वही महारास है। इसीलिए भागवत में भगवान श्रीकृष्ण के लिए 'रसौ वै सः' कहा गया है। शरद पूर्णिमा की रात्रि को जब भगवान श्रीकृष्ण यमुना तट से बाँसुरी का स्वर छेड़ते हैं तो समस्त गोपियाँ जिस स्थिति में थीं उसी स्थिति में दौड़ी चली आती हैं। उक्त बातें सुनकर श्रोता आत्मविभोर हो उठे।

आज भी भगवान की बाँसुरी बज रही है जिसकी स्थिति गोपियों की तरह होती है उन्हें ही बाँसुरी की मनमोहनी धुन सुनाई देती है। संसार की ओर मुख एवं चिन्तन किए लोग इस आनन्द से वंचित रह जाते हैं। उन्होंने कहा भगवान श्रीकृष्ण को प्रत्येक गोपी समर्पण भाव से प्रीति करती थी। भागवत आदि पुराणों में जितने भी भक्तों की कथाओं का वर्णन आता है उनका जीवन त्याग और समर्पण से भरा हुआ था। गोपियों का समर्पण सर्वोपरि है।

उद्धव प्रसंग सुनाते हुए उन्होंने कहा ज्ञान की गरिमा को लिए उद्धव जी ने जब गोपियों को निराकार ब्रह्म का उपदेश देना चाहा तो गोपियों ने उन्हें टका-सा उत्तर देते हुए कहा- हे उद्धव हमारे पास एक ही मन था उसे भी श्रीकृष्ण अपने साथ चुरा ले गए अब हम आपके ब्रह्म ज्ञान को सुनने के लिए दूसरा मन कहाँ से लाएँ। इसका तात्पर्य यह है कि परमात्मा को प्राप्त करना है तो प्रेमी हृदय बनना होगा।

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