Biodata Maker

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia

आज के शुभ मुहूर्त

(अक्षय तृतीया)
  • तिथि- वैशाख शुक्ल तृतीया
  • शुभ समय- 6:00 से 9:11, 5:00 से 6:30 तक
  • जयंती/त्योहार/व्रत/मुहूर्त- अक्षय तृतीया/सर्वार्थसिद्धि योग
  • राहुकाल- दोप. 12:00 से 1:30 बजे तक
webdunia

भक्ति और ज्ञान : एक-दूसरे के पूरक

- डॉ. गोविन्द बल्लभ जोशी

Advertiesment
हमें फॉलो करें जैन धर्म
ND

भक्ति का तात्पर्य है जो सीधे भगवद् प्राप्ति करा दे, यह तभी संभव है जब साधक या भक्त अपने उपास्य का स्वरूप, स्वभाव और प्रभाव को जान लेता है। भक्ति भगवत्‌ को प्राप्त होने से पूर्व प्रारंभ होती है और भगवत्‌ प्राप्ति के बाद भी सतत्‌ चलती रहती है। भक्ति वह स्थिति है जो साधक को एकरस कर भव बंधन से मुक्त कर देती है। उक्त उद्‍गार वृंदावन के संत स्वामी गिरीशानन्द सरस्वती महाराज ने अपने प्रवचन में व्यक्त किए।

स्वामी जी जिज्ञासुओं को भक्ति, ज्ञान और साधन का सूक्ष्म ज्ञान देते हुए कहते हैं, भक्ति और ज्ञान साधन नहीं है, अपितु एक-दूसरे के पूरक हैं। इसमें एक को भी पकड़ लेने से भगवान की प्राप्ति हो जाती है। सूत्र है कि ज्ञान से भक्ति की प्राप्ति होती है और भक्ति से साधक परम ज्ञानी हो जाता है। वस्तुतः भक्ति मानव के कल्याण का सूत्र है जिसे पकड़ लेने से सीधे भगवद् प्राप्ति ही होती है।

शास्त्र, संत और उनके द्वारा रचित सद्ग्रंथ मानव जीवन की दिशा बदल देते हैं। भव बंधन से मुक्ति का बोध संतों के उपदेश से संभव है। तत्वज्ञ संत संयम्‌ के प्रत्येक प्राणी के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करते हैं। उनकी वाणी साधारण से साधारण और विशिष्ट से अति विशिष्ट व्यक्ति को बड़े सहज भाव से भक्ति मार्ग में प्रवृत्त करने वाली होती है। इसीलिए नारद भक्ति सूत्र में इस बात का उल्लेख है कि भक्ति स्वयं फल स्वरूपा है।

प्रेम रूपा भक्ति से जब जीवन थिरकने लगता है तो उसे ही परमानन्दावस्था कहते हैं। ऐसी स्थिति में मस्ती की वाणी ही संगीत बन जाता है तो मस्ती की चाल नृत्य बन जाती है। इस अवस्था में अवलोक करने वहां स्वयं ईष्ट चलकर आ जाता है।

webdunia
ND
भक्ति की पराकाष्टा बताते हुए स्वामी कहते हैं- 'आत्मनः भगवद्भावं सर्वभूतेषु यः पश्येत्‌' अर्थात्‌ आत्म स्वरूप में बैठे हुए उस परमात्मा को जो एक शरीर में नहीं अपितु सभी प्राणियों में देखता हो, अपने अनुभव को आनन्द को सर्वत्र देखता हो वही प्रेमा स्वरूपा भक्ति को प्राप्त हुआ होता है।

सूत्र है कि परमात्मा भक्ति स्वरूप है अतः जब तक ईश्वर नहीं मिलता तब तक भक्ति करते रहो। ईश्वर मिल जाने के बाद भी भक्ति करो। विशेष अनुसार अच्छा लगता है वह भक्ति नहीं कर सकता तथा संसार जिसे काटने लगता है तभी भक्ति में प्रवेश होता है। समाज एवं परिवार की सेवा करना बहुत अच्छा कार्य है। यदि उन सब का संबंध या उनकी निष्ठा ईश्वर भक्ति से जुड़ी हुई हो तो। अन्यथा यह विचार नहीं करना चाहिए कि में समाज को या दूसरे के जीवन सुधार दूँगा क्योंकि संसार तो संसार ही है। लेकिन भक्ति का सूत्र मत छोड़ों क्योंकि उसके प्रभाव से तुम्हारा जीवन तो सुधरेगा ही, साथ ही कुछ लोगों का भी कल्याण अवश्य होगा।

हमे नित्य प्रतिदिन संसार में रहते हुए विष रूपी विषयों का चिंतन त्याग कर अमृतस्वरूप उस परम प्रेमास्पद परमात्मा का स्मरण करना चाहिए।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi