- गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर
Gurudev sri sri ravi shankar discourse: आप जो कुछ भी पाना चाहते हैं, आपका मन हर समय उसी बात पर लगा रहता है और अधिकतर समय आप कुछ न कुछ प्राप्त करने में व्यस्त रहते हैं। इससे पहले कि एक इच्छा मिट जाए, दूसरी आ जाती है; जैसे कि वे कतार में खड़ी हों! जब आप अपने मन के इस स्वभाव पर विचार करते हैं, तो भीतर यह प्रश्न उठता है कि वास्तव में जीवन का उद्देश्य क्या है?' यह प्रश्न मनुष्य होने की पहचान है और यह हमारे भीतर के मानवीय मूल्यों को जीवंत करता है।
इस प्रश्न का उत्तर ढूंढने में जल्दबाजी न करें; प्रश्न के साथ बने रहें। जो इसका उत्तर जानता है वह आपको नहीं बताएगा। और जो बताता है उसे स्वयं उत्तर ज्ञात नहीं। यह प्रश्न अपने भीतर गहराई में जाने का एक माध्यम है। आप किताबें पढ़कर या इधर-उधर की प्रक्रियाएँ करके अपने भीतर गहराई में नहीं जा सकते। वे कुछ सीमा तक ही आपकी सहायता कर सकती हैं, आपको कुछ समझ दे सकती हैं, लेकिन वे उद्देश्य पूरा नहीं करेंगी। भीतर ही भीतर, प्रत्येक व्यक्ति मुस्कुरा रहा है, लेकिन हम उस मुस्कुराहट के संपर्क में नहीं हैं। उस मुस्कान के संपर्क में आना, सहज, सरल और निर्दोष होना ही आत्मज्ञान है। आत्मज्ञान का अर्थ है- जीवन को गहराई से जीना, किसी भी परिस्थिति में तनावग्रस्त न होना; बल्कि परिस्थितियों से प्रभावित होने के बजाय स्वयं उन्हें प्रभावित करने में सक्षम होना।
कुछ लोग कहते हैं कि जीवन का उद्देश्य है, 'दोबारा इस ग्रह पर वापस न आना'। अन्य लोग कहते हैं कि जीवन का उद्देश्य, 'प्रेम' है। कुछ लोग ऐसा क्यों कहते हैं कि वे वापस नहीं आना चाहते? क्योंकि उन्हें लगता है कि प्रेम यहाँ है ही नहीं या प्रेम अपने साथ दुख भी लाता है। यदि यह स्थान अत्यधिक अनोखा और प्रेम तथा दिव्यता से भरपूर हो, तो वापस न आने की इच्छा स्वाभाविक रूप से कम हो जाएगी। जब हम जीवन के उद्देश्य को हर दृष्टिकोण से देखते हैं, तो जीवन का अंतिम लक्ष्य एक ऐसा प्रेम है, जो समाप्त नहीं होता, एक ऐसा प्रेम जो दर्द का कारण नहीं बनता, एक ऐसा प्रेम जो बढ़ता रहता है और सदा के लिए बना रहता है।
तो आप प्रेम के उस बिंदु तक कैसे पहुंचते हैं जहां यह विकृतियों से मुक्त है और आप स्वयं के साथ सहज हैं?
आपको यह देखना होगा कि वास्तव में जो चीज आपको उस निश्छल प्रेम से रोक रही है वह आपका अहंकार है। अहंकार क्या है? अहंकार एक स्वप्न के समान है। कोई स्वप्न तब तक बना रहता है जब तक उसका अस्तित्व समाप्त नहीं हो जाता। आप किसी सपने को वास्तविक नहीं कह सकते, लेकिन आप उसे अवास्तविक भी नहीं कह सकते क्योंकि आपके पास उसका अनुभव है। अहंकार बस अप्राकृतिक होना है। अहंकार कोई पदार्थ नहीं है; यह अँधेरे की तरह एक अपदार्थ है। अंधकार केवल प्रकाश का अभाव है। आप कह सकते हैं कि यह सिर्फ परिपक्वता की कमी या शुद्ध ज्ञान का अभाव है। ज्ञान आपकी आंतरिक स्थिति, आपके प्रेम को विकसित करने में सहायक होता है। प्रेम कोई कृत्य नहीं है; यह तो अस्तित्व की एक अवस्था है। हम सब प्रेम से बने हैं। जब मन वर्तमान क्षण में होता है, तो हम प्रेम की स्थिति में होते हैं।
वर्तमान क्षण में जीने के लिए मन को थोड़ा प्रशिक्षित करें। मन की प्रकृति का निरीक्षण करें। मन नकारात्मक गुणों से चिपक जाता है। यदि दस प्रशंसाएं और एक निंदा हो, तो मन को निंदा ही याद रहेगी। मन सदा अतीत और भविष्य के बीच झूलता रहता है। जब मन अतीत में होता है, तो वह उस वस्तु के विषय में क्रोधित होता है जो पहले ही हो चुकी है; लेकिन क्रोध व्यर्थ है क्योंकि हम अतीत को नहीं बदल सकते। और जब मन भविष्य में होता है, तो वह किसी ऐसी चीज़ के विषय में चिंतित होता है जो हो भी सकती है और नहीं भी। कल मेरा क्या होगा? क्या आपने देखा है कि पिछले वर्ष या दो वर्ष पहले भी आपका यही प्रश्न था? लेकिन जब हम वर्तमान क्षण में होते हैं और पीछे मुड़कर देखते हैं, तो हमारी चिंता और क्रोध बहुत निरर्थक प्रतीत होते हैं। इसलिए जब क्रोध और चिंता दूर हो जाती है, तो मन आनंद से भर जाता है, प्रेम से भर जाता है।