Sawan posters

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia

आज के शुभ मुहूर्त

(द्वितीया तिथि)
  • तिथि- श्रावण शुक्ल द्वितीया
  • शुभ समय- 7:30 से 10:45, 12:20 से 2:00
  • जयंती/त्योहार/व्रत/मुहूर्त-चंद्रदर्शन/श्री करपात्री जी जयंती, सिंधारा दोज
  • राहुकाल-प्रात: 10:30 से 12:00 बजे तक
webdunia

अच्छे कर्मों के अच्छे फल

दुख ही होगा पाप का फल

Advertiesment
हमें फॉलो करें धर्म
ND

संसार में यह बड़ी विचित्र बात है कि लोग सहज प्राप्त अमृत को ठुकरा कर कठिनता से प्राप्त विष का प्याला पीते हैं। वेद कहता है लोक में सुख और शांति तथा परलोक में श्रेष्ठतम कर्मों से ही प्राप्त हो सकता है अन्यथा नहीं। अतः प्रभु के स्वरूप और उसकी न्याय-व्यवस्था को समझकर मनुष्य को धर्माचरण ही करना चाहिए।

धर्म प्रसंगादपि नाचरन्ति पापं प्रयत्नेन समाचारन्ति।
एतत्तु चित्रं हि मनुष्यलोकेऽमृतं परित्यज्य विषं पिबन्ति।

धर्माचरण बिना कठिनाई के हो रहा है तो उसकी भी उपेक्षा करेंगे और पापाचरण पूरी कोशिश से करेंगे। वेद के इस कर्म सिद्धांत पर मनुष्य को पूरा विश्वास हो जाए तो इसके तीन लाभ होंगे।

लोग धर्म के फल- सुख की तो इच्छा करते हैं किंतु धर्म का आचरण नहीं करना चाहिए, ऐसी वृति बनाए रखते हैं। इसी प्रकार पाप के फल- दुख को कोई नहीं चाहते किंतु पूरी शक्ति के साथ पाप करते हैं। यह संसार के लोगों की एक विडंबना ही कही जा सकती है।

पहला लाभ- यह कि किसी भी सकंट के आने पर वह घबराएगा नहीं। उसके मन में यह निश्चय होगा कि जो कष्ट मरे ऊपर आया है, वह मेरे ही दुष्कर्मों का फल है तथा मैं इसको भोग कर ही इससे छुटकारा प्राप्त कर सकता हूँ। जब प्रत्येक अवस्था में मुझे यह दुःख भोगना ही है तो फिर रोने-चीखने का क्या मतलब? मुझे धैर्य और साहस से इसका सामना करना चाहिए।

तावद्भयान्न भेत्तव्यं यावद्भयमनागतम्‌।
आगतन्तु भयं वीक्ष्य प्रहर्तव्यतभीतवत्‌

भय से तब तक नहीं डरना चाहिए जब तक कि वह आया न हो, या आ ही जाए तो भय पर निर्भीक होकर प्रहार करना चाहिए। इससे पहला लाभ यह होगा कि कष्ट का सामना करने के लिए साहस उत्पन्न होगा।

webdunia
ND
दूसरा लाभ यह होगा कि हम इतने पर ही संतुष्ट नहीं रहेंगे कि कष्ट आया और शांति से सह लिया। अपितु हममें इतनी दृढ़ता आएगी कि हम प्रभु से कष्ट की प्रार्थना भी करेंगे और कष्ट आने पर उसका स्वागत भी सहर्ष करेंगे क्योंकि माँगने से न सुख मिलता है न दुःख मिलता है।

हमें अपने कर्मों के आधार पर ही सब मिलता है। फिर यह कहाँ की ईमानदारी है कि प्रभु से सुख-समृद्धि के लिए ही प्रार्थना करते रहें? उचित तो यह है कि हम अपनी प्रार्थना में कहें कि प्रभो! मुझसे अज्ञान और दुर्बलता वश जो भी पाप हुआ हो मैं उसका दुःखरूप पुल तुझसे माँगता हूँ, ताकि मेरा वह भोजज शीघ्र उतर जाए। मन में इस प्रकार की धारणा के बनने पर हमें कष्ट के आने पर वह शांति मिलेगी जो किसी का ऋण चुकाने पर होती है।

वेद में इस प्रकार की प्रार्थना भी की गई है कि हे घोर आपत्ति! मैं तेरा आदर करता हूँ। मैंने अपनी भूलों से 'अयस्मयान्‌ बन्धपाशान्‌ विचृत' लौहमय बंधन, फौलादी बेड़ियाँ डाल ली हैं, तू अपना तीव्र प्रहार करके इनको छिन्न-भिन्न कर दे। वह यम निमायक प्रभु ही मेरे कर्मों के आधार पर मुझे देता है। मैं इस प्रभु के इस संहारक रूप को भी भक्ति से नमस्कार करता हूँ। अतः दूसरा लाभ दुःख से निर्भय रहने का होगा।

इस कर्म सिद्धांत पर आस्था से तीसरा लाभ होगा-दुष्कर्मों का परित्याग क्योंकि संसार के समस्त पाप सुख के लिए किए जाते हैं, दुःख के लिए नहीं। इस मनुष्य आर्थिक प्रलोभन के कारण झूठ बोलता है। वह समझता है कि टकी सी जीभ थोड़ी हिलाने से हजारों के वारे-न्यारे हो जाएँगे और फिर उस धन से संसार के अनेकविध भोगों का आनंद लुटूँगा।

यही हाल चोरी और डकैती का है। स्पष्ट है कि सब बुराइयाँ सुख की इच्छा से ही की जाती हैं। अब सोचने की बात तो यह है कि क्या पाप का फल भी सुख हो सकता है? पाप का फल तो दुख ही होगा। जब पाप का परिणाम दुःख है तो फिर दुःख से बचने के लिए उसका परित्याग आवश्यक है। इस प्रकार तीसरा लाभ पापों से मुक्त होने का होगा।

शांत और सुखी जीवन बिताने के लिए ही नहीं अपितु जीवन के मुख्य लक्ष्य मुक्ति के लिए भी मनुष्य को शुभ कर्म करने चाहिए।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi