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(चतुर्थी व्रत)
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जीवन एक क्रिकेट मैच...!

मोबाइल नहीं, स्माइल जरूरी

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हमें फॉलो करें क्रांतिकारी संत तरुणसागरजी
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क्रांतिकारी संत तरुणसागरजी ने क्रिकेट की व्याख्या करते हुए कहा कि जीवन एक क्रिकेट है, धरती की विराट पिच पर समय बॉलिंग कर रहा है। शरीर बल्लेबाज है, परमात्मा के इस आयोजन पर अम्पायर धर्मराज हैं। बीमारियाँ फील्डिंग कर रही हैं, विकेटकीपर यमराज हैं, प्राण हमारा विकेट है, जीवन एक क्रिकेट है।

इस डे-नाइट मैच में हमें रचनात्मकता के जलवे दिखाने हैं और साँसों के सीमित ओवर में सृजन के रन बनाने हैं। गिल्लियाँ उड़ने का अर्थ साँस का टूट जाना है, एलबीडब्ल्यू यानी हार्ट-अटैक। दुर्घटना में मरने वाला रन आउट कहलाता है और सीमा पर शहीद होने वाला कैच आउट कहा जाता है। आत्महत्या का अर्थ हिट विकेट और हत्या स्टम्प आउट हो जाना है।

कभी-कभी कुछ आक्रामक खिलाड़ी जल्दी ही पैवेलियन लौट जाते हैं, लेकिन पारी ऐसी खेलते हैं कि कीर्तिमान बना जाते हैं, सबका अपना-अपना रन रेट है, जीवन एक क्रिकेट है।

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घर आए अतिथि को भोजन के लिए पूछा करो, भोजन के लिए नहीं पूछ सकते तो पानी के लिए पूछा करो, पानी का नहीं पूछ सकते हैं तो बैठने के लिए आसन दिया करो। बैठने के लिए आसन भी नहीं दे सकते तो दो मीठे बोल बोला करो। दो मीठे बोल नहीं बोल सकते, मुस्कुराहट भी नहीं दे सकते तो चुल्लू भर पानी में डूब मरो। उक्त प्रेरक विचार उन्होंने प्रवचनमाला में व्यक्त किए।

हाथों में मोबाइल हो न हो, चेहरे पर स्माइल हर हाल में होना चाहिए। आदमी स्मार्ट मोबाइल से नहीं, मुस्कुराहट से बनता है। हँसना पुण्य है और हँसाना परमपुण्य है। जब आप हँसते हैं तो आप ईश्वर की आराधना करते हैं। जब आप किसी रोते हुए को हँसाते हो तो ईश्वर आपकी आराधना करता है। दुनिया के सामने रोने की आवश्यकता नहीं है। जब पाँच सेकंड मुस्कुराने से फोटो अच्छी आ सकती है तो जिंदगी भर मुस्कुराने से जिंदगी क्यों नहीं अच्छी हो सकती।

राजनीतिक लोग पार्टियाँ बदल लेते हैं, बैनर बदल लेते हैं, भाषण बदल जाता है, टोपी बदल जाती है, लेकिन टोपी के नीचे जो खोपड़ी है वही नहीं बदलती। मैं कहता हूँ टोपी को नहीं, खोपड़ी बदलो।

आप अपने से बेखबर हैं, कानों के साथ आँखों का उपयोग किया करो। किसी ने कहा है वो दिल के बहुत अच्छे हैं, लेकिन कानों के कच्चे हैं। आदमी सुनी-सुनाई बातों पर यकीन कर लेता है और बरसों की दोस्ती दुश्मनी में बदल जाती है।

एसटीडी कॉल करने से पहले शून्य लगाना जरूरी है। उसी तरह गुरु के पास भी जाने से पहले मन का शून्य होना जरूरी है। मन खाली होगा तभी तो कुछ भर पाओगे। शक का कीड़ा एक बार दिमाग में घुस जाए तो उसका कोई इलाज नहीं होता।

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