जीवन में जब कोई बड़ा निर्णय लेना हो तब वेदमत, लोकमत, विधिमत और परिवार का मत अवश्य लेना चाहिए। यह हमें सदैव सच्चा मार्ग दिखाते हैं। राजा दशरथ द्वारा राम को राज्य सौंपने का प्रसंग सुनाते हुए व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि राज्य किसको दिया जाए, यह निर्णय करने के लिए आवश्यक है कि श्रेष्ठ संगति के पास जाकर मश्वरा करें, तभी हम इस वसुधा रूपी कुटुंब के साथ न्याय कर सकेंगे। राजा दशरथ ने राम को राज्य सौंपने का निर्णय इसी आधार पर किया था।
आज मनुष्य जन्म से ही विजय, विभूति और कामनाओं की पूर्ति के लिए वैभव चाहता है। उसके संशय, संदेह, भावनाएँ और जीवन में घटने वाली घटनाएँ अकसर उसके आनंद को छिन्न-भिन्न कर देते हैं, तभी तो उसकी कामनाओं की पूर्ति में बाधा उत्पन्न होती है। इस बाधा को दूर करने के लिए आध्यात्मिक मार्ग ही एक चिरस्थायी समाधान हो सकता है।
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गीता और महात्मा कबीर का स्मरण करते हुए कहा कि हमें समत्व और सहजता की साधना करना चाहिए। हमें हमेशा यह प्रयत्न करना चाहिए कि हमारा अंतःकरण किस तरह शांत हो सकता है। हमें सही समय पर सही निर्णय करना तभी आएगा तब हम अपने जीवन के आनंद को चिरस्थायी बनाने की दिशा में आगे बढ़ेंगे। उन्होंने राम कथा को घर-घर की, परिवार की कथा बताया।
आधुनिक समय को रेखांकित करते हुए कहा कि हमारे जीवन में आध्यात्मिक गुणवत्ता आनी चाहिए। व्याकुलता को दूर करने की विधि बताते हुए कहा कि हमेशा अपनी परिस्थिति और अवस्थाओं का सच जानते रहो। हमेशा अपनी ही समीक्षा करते रहो। यही उपाय मनुष्य को सत्यता के निकट लाता है और मनुष्य अपने सच को खुद ही स्वीकार करने का अभ्यास करता है।