श्रीमद्भागवत भक्ति का विज्ञान है। कृष्ण की निर्मल भक्ति मोक्षदायिनी है। वस्तुतः मन ही बंधन और मुक्ति का कारक है। इसलिए तन को नहीं मन को सँवारना चाहिए। मन की विशुद्धता जरूरी है। ईश्वर की सरलता एवं श्रेष्ठता का साधन हैं हरि कथाएँ।
इस कलियुग में हरि कथाएँ इस भवसागर से पार होने के लिए श्रेष्ठ साधन हैं। श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण ज्ञानयज्ञ है, यह ईश्वर के प्रति अनुराग, आस्था निर्मित करता है। हरि के प्रति सबका अनुराग जरूरी है। कलयुग में हरिनाम का जाप ही सभी बाधाओं से मुक्ति का साधन है। जो परमार्थी है वह कार्यसिद्धि कर सकता है।
जहाँ त्याग है, वहाँ शांति संभव है। नवधा भक्ति वस्तुतः स्तुति है। भागवत में कपिल भगवान के रूप में उल्लेखित है जिसका मन निर्मल है उसको प्रभु की प्राप्ति अवश्यंभावी है।
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ईश्वर का श्रेष्ठ अनुगायन श्रीमद्भागवत कथा है, जिसमें भक्ति के साथ-साथ शक्ति समाहित है। उन्होंने कहा कि जहाँ प्रेम होता है वहाँ प्रतीक्षा होती है। कथा व सत्संग मार्गदर्शक हैं जो मानव जीवन के लक्ष्य और उद्देश्यों को निर्धारित करते हैं। सत्य, आध्यात्मिकता से ही स्वर्णिम युग की स्थापना की जा सकती है।
एक परमपिता परमात्मा जिसकी हम सभी आत्माएँ संतान हैं, ने धरती को स्वर्ग बनाकर हमें सर्वगुण संपन्न देवमूर्ति बनाकर भेजा है। हमने विकारों के अधीन होकर वह स्वर्णिम स्वर्ग खो दिया और कलयुगी नर्क को झेल रहे हैं।
माताएँ बहनें ही भारत की शक्ति हैं और यह मातृ शक्ति ही स्वर्णिम भारत लाएगी। जीवन का सत्य अध्यात्म है। माँ प्रथम गुरु है। अतः मातृशक्ति आध्यात्मिक हो जाए तो संसार को स्वर्ग बनाना सहज होगा। इसलिए हर मनुष्य को श्रीहरि नाम का जप करना चाहिए। तथा सत्य के रास्ते पर चलते हुए भगवद्गीता के श्रवण के साथ-साथ माता-पिता का भी ध्यान रखना चाहिए।