क्रांतिकारी संत मुनिश्री तरुणसागरजी ने धर्मसभा में कहा कि कुछ हटके करो, खुद को बदलो। खुद को बदलना मुश्किल जरूर है, नामुमकिन नहीं। हर व्यक्ति में कुछ खामी और कुछ खासियत होती है। गरीब से गरीब व्यक्ति की झोपड़ी में भी एक दरवाजा जरूर होता है।
व्यापार में फोन का, भोजन में मौन का, मंत्रों में ओम का बड़ा महत्व है। उसी तरह नदी में नाव का, शरीर में पाँव का व पूजा में भाव का बड़ा महत्व है। जैन धर्म में त्याग का, समाज में मंडल का, मुनियों में कमंडल का और मंदिर में भाव का बड़ा महत्व होता है। आज के मानव को दूसरे की थाली की इल्ली भी नजर आ जाती है और अपनी थाली की बिल्ली भी नजर नहीं आती। यदि आज किसी को कहें कि गुस्सा मत करो, तो कहता है गुस्सा कौन कररिया है।
ND
प्रार्थना खुद की बनाइए, दूसरों की बनी प्रार्थना में भाव नहीं आते। प्रार्थना खुद की बनाकर करोगे तो उसका भाव ही अलग होगा। प्राणों से की गई प्रार्थना खाली नहीं जाती इसलिए दिन में एक बार णमोकार मंत्र का जाप जरूर करें।
परिवर्तन के लिए एक पल ही काफी है। पहले समय में चक्रवर्ती राजा, जिनके पास छः खंड का महल था, उन्होंने भी सबकुछ त्याग कर दीक्षा ग्रहण कर ली थी। आज व्यक्ति के पास दो खंड का महल है तो वह खुद को चक्रवर्ती का बाप समझता है। सत्य को कभी मत भूलो, इस बात का विश्वास रखो कि जो कुछ मिला है वह हमेशा के लिए नहीं मिला है। जो व्यक्ति पैदा हुआ है उसका विवाह हो या न हो, पढ़ाई करे या न करे, धनवान बने या न बने परंतु मरेगा जरूर। जो भगवान से सटा हुआ है वह भक्त है, जो संसार में बँटा हुआ है वह विभक्त है और जो न इधर का है न उधर का है वह कमबख्त है।
पहले दहेज में तीन चीजें मिलती थीं घड़ी, साइकल और रेडियो। साइकल का पैडल जिस तरह अप-डाउन होता है जिंदगी का पैडल भी उसी तरह अप डाउन होता है। गरीब व्यक्ति शक्कर के लिए कंट्रोल के चक्कर लगाता है और अमीर व्यक्ति शक्कर कंट्रोल करने के लिए डॉक्टर के चक्कर लगाता है।