सनातन धर्म के अनुसार मंत्र सिद्धि के लिए आवश्यक है कि मंत्र को गुप्त रखना चाहिए। मंत्र- साधक के बारे में यह बात किसी को पता नहीं चलना चाहिए कि वो किस मंत्र का जप करता है या कर रहा है। यदि मंत्र के समय कोई पास में है तो मानसिक जप करना चाहिए।
हमारे पुराणों में मंत्रों की असीम शक्ति का वर्णन किया गया है। यदि साधना काल में नियमों का पालन न किया जाए तो कभी-कभी इसके बड़े घातक परिणाम सामने आ जाते हैं। प्रयोग करते समय तो विशेष सावधानी बरतनी चाहिए।
मंत्रों का प्रभाव मंदिर में प्रतिष्ठित मूर्ति के प्रभाव का आधार मंत्र ही तो है क्योंकि बिना मंत्र सिद्धि यंत्र हो या मूर्ति अपना प्रभाव नहीं देती। मंत्र आपकी वाणी, आपकी काया, आपके विचार को प्रभावपूर्ण बनाते हैं। इसलिए सही मंत्र उच्चारण ही सर्वशक्तिदायक बनाता है।
मंत्र उच्चारण की तनिक-सी त्रुटि हमारे सारे करे-कराए पर पानी फेर सकती है। इसलिए गुरु के द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन साधक को अवश्य करना चाहिए।
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किसी भी साधक को चाहिए कि वो प्रयोज्य वस्तुएं जैसे - आसन, माला, वस्त्र, हवन सामग्री तथा अन्य नियमों जैसे - दीक्षा स्थान, समय और जप संख्या आदि का दृढ़तापूर्वक पालन करें, क्योंकि विपरीत आचरण करने से मंत्र और उसकी साधना निष्फल हो जाती है। जबकि विधिवत पद्धति से की गई साधना से इष्ट देवता की कृपा सुलभ रहती है। भक्तों को साधना काल में निम्न नियमों का पालन अनिवार्य है।
- साधना काल में वाणी का असंतुलन, कटु-भाषण, प्रलाप, मिथ्या वचन आदि का त्याग करें। - मौन रहने की कोशिश करें। - निरंतर मंत्र जप अथवा इष्ट देवता का स्मरण-चिंतन करना जरूरी होता है। - जिसकी साधना की जा रही हो, उसके प्रति मन में पूर्ण आस्था रखें। - मंत्र-साधना के प्रति दृढ़ इच्छा शक्ति धारण करें। - साधना-स्थल के प्रति दृढ़ इच्छा शक्ति के साथ साधना का स्थान, सामाजिक और पारिवारिक संपर्क से अलग होना जरूरी है। - उपवास में दूध-फल आदि का सात्विक भोजन लिया जाए। - श्रृंगार-प्रसाधन और कर्म व विलासिता का त्याग अतिआवश्यक है। - साधना काल में भूमि शयन ही करना चाहिए।